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बिग बॉस 2 के विजेता Ashutosh Kaushik ने HC में दी याचिका, बोले- “बेइज़ाती सी महसूस होती है”

अभी भी क्‍यों मिल रही पुराने गुनाह की सजा -आशुतोष कौशिक

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बेइज़ाती सी महसूस होती है -आशुतोष कौशिक

बिग बॉस विनर आशुतोष कौशिक(Ashutosh Kaushik) ने HC में दी याचिका, बोले- अभी भी क्‍यों मिल रही पुराने गुनाह की सजा

रियलिटी शो के विजेता सेलेब्रिटी आशुतोष कौशिक (Ashutosh Kaushik) ने आशुतोष कौशिक गुरुवार को दिल्ली हाई कोर्ट में ‘भूल जाने के अधिकार’ के तहत एक याचिका दायर की है। आशुतोष कौशिक ने साल 2007 में रोडीज 5.0 और ‘बिग बॉस’ सीजन 2008 में जीत हासिल की थी। आशुतोष ने कोर्ट में दी गई इस याचिका में साल 2009 में शराब पीकर गाड़ी चलाने के अपने मामले से जुड़े वीडियोज, फोटोज और आर्टिकल्स को सभी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से हटाने की मांग की है। उन्‍होंने कोर्ट से कहा है कि ये 10 साल पुराना केस है लेकिन इसकी सजा अभी भी उन्‍हें मिल रही है क्‍योंकि उस घटना से संबंधित वीडियोज और आर्टीकल सभी ऑनलाइन प्‍लेटफार्म पर अभी भी उपलब्ध है।

आशुतोश कौशिक(Ashutosh Kaushik) ने हाई कोर्ट से केंद्र और Google को निर्देश देने की मांग की कि उनके कुछ वीडियो, फोटो और आर्टीकल विभिन्न ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से हटाए जाएं क्योंकि उनके जीवन पर इनका “हानिकारक प्रभाव” है। न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने एक नोटिस जारी किया और सूचना और प्रसारण मंत्रालय, Google LLC, भारतीय प्रेस परिषद और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया निगरानी केंद्र से उस याचिका का जवाब देने को कहा, जिसमें याचिकाकर्ता आशुतोष ने ‘निजता के अधिकार और भूल जाने का अधिकार के तहत ये अनुरोध किया है।’

अदालत ने अधिकारियों से चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा और मामले को आगे की सुनवाई के लिए दिसंबर में सेड्यूल किया गया है। 2007 में एमटीवी हीरो होंडा रोडीज 5.0 और 2008 में बिग बॉस का दूसरा सीजन जीतने वाले कौशिक ने विभिन्न ऑनलाइन से उनके वीडियो, फोटो और अन्य संबंधित लेखों को हटाकर उनकी प्रतिष्ठा और गरिमा की रक्षा के लिए तत्काल कदम उठाने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग की। Google द्वारा सुविधा प्रदान किए जा रहे प्लेटफ़ॉर्म उनके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हानिकारक प्रभाव डाल रहे हैं।


याचिका में कहा गया है कि राइट टू बी फॉरगॉटन ‘किसी व्यक्ति के कुछ डेटा को हटाने के दावे को दर्शाता है ताकि तीसरे व्यक्ति अब उनका पता न लगा सकें और यह एक व्यक्ति को अपने जीवन की पिछली घटनाओं को चुप कराने में सक्षम बनाता है जो अब नहीं हो रही हैं। इस प्रकार, राइट टू बी फॉरगॉटन ‘व्यक्तियों को कुछ इंटरनेट रिकॉर्ड से अपने बारे में जानकारी, वीडियो या तस्वीरें हटाने का अधिकार देता है ताकि खोज इंजन उन्हें ढूंढ न सकें।

याचिका में कहा गया है कि हालांकि भारत का संविधान स्पष्ट रूप से भूल जाने के अधिकार को मान्यता नहीं देता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि जीवन के अधिकार में व्यक्तिगत स्वतंत्रता शामिल है और इस प्रकार, निजता के अधिकार को अनुच्छेद 21 से हटा दिया गया है। निजता के अधिकार के साथ समन्वय में, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के अभिन्न अंग के रूप में स्वीकार किया था।

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