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जानिए गुलामी की कौन सी निशानी को मोदी सरकार ने मिटाया

आईपीसी का असल में नाम आयरिश पीनल कोड था। ये बात तो सभी जानते हैं कि अंग्रेज हिन्दुस्तान की जनता को सहूलियत देने के लिए कानून नहीं बनाते थे। किस तरह से हम सभी को सिस्टम के प्रति एक गुलाम की तरह ट्रीट करे। कैसे आजादी का दमन किया जाए।

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प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले साल 15 अगस्त में पांच प्रण दिए थे। उसमें उन्होंने कहा था कि गुलामी की जितनी भी निशानियां हैं उससे मुक्ति पाना सबसे पहले काम है। गुलामी की सबसे बड़ी निशानी होने का ठप्पा आईपीसी, सीआरपीसी और एविडेंश एक्ट पर था। 1830, 1856, 1872 उस दौरान इन सब चीजों को लाया गया और हम अब तक ढो रहे थे। आईपीसी का असल में नाम आयरिश पीनल कोड था। ये बात तो सभी जानते हैं कि अंग्रेज हिन्दुस्तान की जनता को सहूलियत देने के लिए कानून नहीं बनाते थे। किस तरह से हम सभी को सिस्टम के प्रति एक गुलाम की तरह ट्रीट करे। कैसे आजादी का दमन किया जाए। कैसे हमारे सिस्टम के पराधीन रहे उस चीज के लिए उस तरह के कानून लाए गए थे। संविधान तो तैयार कर लिया गया लेकिन अपराध और अपराधियों को पकड़ने का सिस्टम अंग्रेज के जमाने से था। एक शख्स था थोमस बैबिंगटन मैकाले ये भारत तो आया था अंग्रेजी की पढ़ाई करने लेकिन उसके बाद इसी भारत में अगर किसी ने देशद्रोह का कानून ड्राफ्ट किया तो वो लार्ड मैकाले ही था। लेकिन भारत के गृह मंत्री ने ऐसा काम किया है। गुलामी की जंजीरों से पूरे सिस्टम को आजादी दी है।

मोदी सरकार ने क्या बदलाव किया

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 में 533 धाराएं होंगी। 160 धाराएं बदली गई हैं और 9 जोड़ी गई हैं। भारतीय न्याय संहिता में 365 धाराएं होंगी। 175 को बदल दिया गया है। 8 धाराएं नई जोड़ी गई हैं। भारतीय साक्ष्य अधिनियम एक्ट में 170 धाराएं होंगी। 23 धाराएं बदली गई हैं। 1 धारा जोड़ी गई है।

अमित शाह ने क्या कहा

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने देश में आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार के लिए लोकसभा में तीन विधेयक पेश किए। विधेयक भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को प्रतिस्थापित करना चाहते हैं। नए विधेयकों के साथ, सरकार का लक्ष्य न्याय सुनिश्चित करना है, सजा नहीं। भारतीय न्याय संहिता, 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 को आगे की जांच के लिए संसदीय पैनल के पास भेजा जाएगा।

सजा नहीं न्याय दिलाने पर फोकस

गृह मंत्री शाह ने कहा कि ‘मौजूदा कानूनों का फोकस ब्रिटिश प्रशासन की रक्षा करना और उसे मजबूत करना था। विचार दंड देना था न कि न्याय देना। तीन नए कानून लोगों के अधिकारों की रक्षा करने की भावना लाएंगे। उन्होंने कहा कि नए विधेयकों का उद्देश्य, दंड देना नहीं, न्याय प्रदान करना होगा। अपराध रोकने की भावना पैदा करने के लिए सजा दी जाएगी।

निरस्त किया जाएगा राजद्रोह कानून

गृह मंत्री ने घोषणा की कि राजद्रोह कानून निरस्त कर दिया गया है। प्रस्तावित कानून में “देशद्रोह” शब्द नहीं है। शाह ने कहा कि भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों के लिए इसे धारा 150 से बदल दिया गया है। धारा 150 में कहा गया है: जो कोई, जानबूझकर बोले गए या लिखे गए शब्दों से या संकेतों द्वारा, या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा, या इलेक्ट्रॉनिक संचार द्वारा या वित्तीय साधनों के उपयोग से उत्तेजित करने का प्रयास करता है, अलगाव या सशस्त्र विद्रोह या विध्वंसक गतिविधियाँ, या अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को प्रोत्साहित करना या भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालना; या ऐसे किसी भी कार्य में शामिल होता है या करता है तो उसे आजीवन कारावास या कारावास से दंडित किया जाएगा जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है। अमित शाह ने देशद्रोह की सजा में बदलाव का भी ऐलान किया। मौजूदा कानून के तहत, राजद्रोह के लिए आजीवन कारावास या तीन साल तक की कैद की सजा हो सकती है। नए विधेयक के प्रावधानों में इसे तीन से सात साल की कैद में बदलने का प्रस्ताव है।

मॉब लिंचिंग के लिए मृत्युदंड

शाह ने संसद को यह भी बताया कि केंद्र मॉब लिंचिंग के मामलों में मौत की सज़ा का प्रावधान लागू करेगी। जब पांच या अधिक व्यक्तियों का एक समूह एक साथ मिलकर नस्ल, जाति या समुदाय, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास या किसी अन्य आधार पर हत्या करता है तो ऐसे समूह के प्रत्येक सदस्य को मृत्युदंड या मृत्युदंड से दंडित किया जाएगा। नए प्रावधान में कहा गया है कि आजीवन कारावास या सात साल से कम की कैद नहीं होगी और जुर्माना भी देना होगा।

रेप कानून में बदलाव

नए विधेयक में बलात्कार की सजा में बदलाव का प्रस्ताव है। मंत्री ने लोकसभा में घोषणा की कि नाबालिगों से बलात्कार के लिए मौत की सजा का प्रावधान होगा। ‘आजीवन कारावास’ शब्द को ‘प्राकृतिक जीवन के लिए कारावास’ के रूप में परिभाषित किया गया है। नए कानून का प्रस्ताव है कि कठोर कारावास से दंडित किया जाएगा जिसकी अवधि दस वर्ष से कम नहीं होगी, लेकिन जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है, जिसका अर्थ उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवन के लिए कारावास होगा, और जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा। इसमें बलात्कार पीड़िताओं की पहचान उजागर करने पर सजा का भी प्रावधान है।

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