करोना महामारी ने हमें संदेश दिया है कि हम स्वदेशी वस्तुओं को अपनाकर आत्मनिर्भर बने व महामारी के बाद के आर्थिक संकट के समय भी स्वदेशी वस्तुओं को अपनाकर अपनी अर्थव्यवस्था को संबल देना बहुत जरूरी होगा।सफलता के लिए सबसे जरूरी होता है कि हम समय व परिस्थितियों अनुसार हमे ढालकर अपने आप को बदल ले।
अभी लोकडाऊन के ६०-६५ दिनों में हमने अनुभव किया कि हमारे अलमारी मे रखें ब्रांडेड कपडे, लक्झरी आदि हमारे जीवन को बचा नहीं सकती, इस अनुभव को हमारे बचें हुये जीवन में प्रत्यक्ष उतारना होगा।
स्वदेशी को अपनाने के लिए हम सबको थोडी थोड़ी अपनी सोच, चरित्र, विचारों मे बदलाव लाना होगा व सादगी, सरलता, सच्चाई अपनाना होगा। कभी कभी विदेशी वस्तुओं पर हमारा झुकाव अपने आप को सबसे अलग, श्रेष्ठ , अमीर साबित करना भी होता है। हमारा सबसे ज्यादा आयात पेट्रोल व सोने में होता है। इससें हमारा रुपया कमजोर होता है व मंहगाई बढती है। जनता को यह हकीकत समझने की जरूरत है कि हम पेट्रोल का दुरुपयोग नहीं करें तथा सोना भी खरीद कर अलमारी में रखा जाता है अर्थात जरूरत से ज्यादा सोने का संचय यह एक डेड इनवेस्टमेंट होता है। किसी भी देश की सच्ची, सही आर्थिक स्थिति की पहचान उसके करंसी की किंमत से ही होती है। यह हमारे देश का दुर्भाग्य कहीये कि हमारे देश में सभी तरह खनिजों, मिनरल का पर्याप्त भंडार होते हुए भी हम हमारी औद्योगिक व घरेलू वस्तुओं का दुसरे देशों से निर्यात करते हैं।यह हमारी गलत आकलन या हमारी गलत नितीयों का परिणाम कि हम कच्चा माल निर्यात करते हैं व पक्का माल वैल्यू ऐडेड गुड्स आयात करते हैं।
यहां हमें यह भी देखना चाहिए कि हमारे विदेशी सामान खरीदने आयात-निर्यात असंतुलन के कारण एक डाँलर की किंमत १९४७ मे रु४.६०, १९८० मे रु६.६१, २००० मे ४३.५० व २०२० रु ७५.९० तक अवमूल्यन होता जा रहा है।
हम सबको अपनी स्वार्थ भावना से उपर उठकर अपनी सोच, मानसिकता बदलने की सक्त जरूरत है। इसकी शुरुआत हम सबको अपने खुद से करनी होगी।
समाज व सरकार को भी स्कूलों मे बच्चों को स्वदेशी का महत्व समझाने हेतु पाठ्यक्रम में जरूरी बदलाव करना होगा। कोई भी बडे बदलाव के लिए उचित नींव रखना जरूरी होता है। आज के बच्चे देश का भविष्य है। उन्हें बचपन से स्वदेशी का महत्व समझाते हुए यह भी जानकारी देनी चाहिए कि हम जब स्वदेशी अपनायेंगे तब हमारी रुपये की किंमत धीरे धीरे अपने आप बढेंगी जिससे हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत होगीं जिसका सकारात्मक असर भविष्य में होगा हमारा रुपया मजबूत होगा व अंतरराष्ट्रीय जगत, व्यापार में हमारे देश की धाक बढेगी।
हमे अपने पुराने इतिहास को फिर से याद करके अपने आप मे, समाज मे नयी ज्योत जलाने की जरूरत है। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने ११५ वर्षों पहले कहा था कि हमारा देश एक पेड की तरह है जिसकी असली जड बुनियाद स्वराज्य है और स्वदेशी एंव विदेशी बहिष्कार उसकी शाखाएं है। स्वदेशी आंदोलन की औपचारिक शुरुआत ७ अगस्त १९०५ को कलकत्ता टाऊन हाँल से की गयीं थी। इस आंदोलन में ब्रिटेन से आने वाले सामान को जलाया जाता था। ७ अगस्त को हाथकरघा दिवस या हैंडलूम डे कहकर मनाया जाता था। आध्रप्रदेश मे इसे वंदेमातरम आंदोलन के नाम से मनाया, जाना जाता था। इस आंदोलन के सूत्रधार बाल गंगाधर तिलक, आँरविंदो घोष, विपीनचंद्र पाल, लाला लजपतराय, चिदंबरम पिल्लई, बाबू जेनू आदि थे। आज जरूरत है कि हम अपने इतिहास को याद करके फिर से पुरी शक्ति के साथ स्वदेशी आंदोलन को शुरुआत करें।
हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने इंडियन चेंबर आँफ कामर्स के संबोधन में हमारे समाज, देश की कमजोर कडी, नब्ज पकडते हुये कहा कि आत्मनिर्भरता की शुरुआत हमें परिवार से करने की जरुरत है। अर्थात इस समय आत्मनिर्भरता की शुरुआत से पहले हम सबको परिवार की परिभाषा समझना जरूरी है। प्राचीन समय में परिवार का अर्थ दादा-दादी, काका-काकी, भुआ, भाई- बहन संयुक्त परिवार होता था। संयुक्तता मे शक्ति होती थी। आज के परिपेक्ष्य मे युवाओं के लिए परिवार मतलब पती, पत्नी व बच्चे रह गया है। हमे समाज में संयुक्त परिवार को फिर से स्थान देना होगा। संयुक्त परिवार हमे त्याग, संयम, सादगी, केयरिंग, शेयरिंग, एक दुसरे की जरूरतों को समझना सिखाता है। हम अगर परिवार से प्रेम करना सिखेंगे, परिवार का महत्व समझेंगे, तभी हम देश से प्रेम कर स्वदेशी अपनाने का महत्व समझ सकेंगे।
शरद गोपीदासजी बागडी, नागपुर
(३ अंतर्राष्ट्रीय-१८ राष्ट्रीय पुरस्कार व २१८ संस्थाओं द्वारा संम्मानित पोर्टफोलियो कंसलटेंट, लेखक व समाज सेवी)