देशभर में इस तरह से हो रही है कोरोना वैक्सीन बनाने की कोशिश, अक्टूबर तक चढ़ सकते हैं पहली सीढ़ी: डॉ. राघवन
भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. के. विजय राघवन ने कहा है कि कोविड-19 के लिए देश में वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया जोरों पर है और अक्टूबर तक कुछ कंपनियों को इसकी प्री क्लीनिकल स्टडीज तक पहुंचने में सफलता मिल सकती है। उन्होंने बताया कि दुनियाभर में वैक्सीन बनाने की चार प्रक्रियाएं हैं। भारत में इन चारों पद्धतियों का इस्तेमाल कोविड-19 के लिए वैक्सीन बनाने में किया जा रहा है।
डॉ. राघवन ने कहा, ‘कुछ कंपनियां एक फ्लू वैक्सीन के बैकबोन में आरऐंडडी कर रही हैं, लगता है अक्टूबर तक प्री क्लीनिकल स्टडीज हो जाएगी। कुछ फरवरी 2021 तक प्रोटीन बनाकर वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया में जुटी हैं। कुछ स्टार्टअप्स और कुछ अकैडमिक्स भी वैक्सीन बनाने की तैयारी कर रहे हैं। साथ ही हम विदेशी कंपनियों से भी साझेदारी कर रहे हैं।’ उन्होंने कहा कि कुछ विदेशी कंपनियों के साथ साझेदारी में हम अगुआई कर रहे हैं जबकि कुछ की अगुवाई में हम अपना योगदान दे रहे हैं।
उन्होंने कहा कि आम तौर पर वैक्सीन बनाने में 10 से 15 साल लग जाते हैं और उनकी लागत 20 करोड़ से 30 करोड़ डॉलर तक आती है। चूंकि कोविड-19 के लिए एक साल में वैक्सीन डिवेलप करने का लक्ष्य है, ऐसे में खर्च बढ़कर सौ गुना यानी 20 अरब से 30 अरब डॉलर हो सकता है।
उन्होंने कहा, ‘आम तौर पर वैक्सीन तैयार होने में 10 से 15 वर्ष लगते हैं और खर्च पड़ता है 20 या 30 करोड़ डॉलर। अब हमारी कोशिश है कि 10 साल को घटाकर एक साल में वैक्सीन डिवेलप कर दें। तब हमें कई मोर्चों पर एक साथ आगे बढ़ना होगा। इसमें रेग्युलेटरी लेवल से लेकर डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम को तेज करना होगा और तब लागत बढ़कर 2 से 3 अरब डॉलर हो सकती है।’
There are about a total of 30 groups in India, big industry to individual academics, who are trying got develop vaccines, of around 20 are keeping a good pace: Principal Scientific Advisor (PSA) to the Government of India Prof K. Vijay Raghavan pic.twitter.com/gWQOS4kCPY
— ANI (@ANI) May 28, 2020
डॉ. राघवन ने कहा कि भारत में तैयार वैक्सीन दुनिया में टॉप क्लास के हैं। देश के लिए गौरव की बात है कि दुनियाभर के बच्चों को जो तीन वैक्सीन दिए जाते हैं, उनमें दो भारत में बनते हैं। पिछले कुछ वर्षों में वैक्सीन कंपनियां न केवल मैन्युफैक्चरिंग कर रही हैं बल्कि आरऐंडडी में भी निवेश कर रही हैं। इसी तरह हमारे स्टार्टअप्स भी इस क्षेत्र में बड़ा योगदान कर रहे हैं। इनके अलावा, इंडिविजुअल अकैडिमिक भी यह काम कर रहे हैं।
AICTE and CSIR have embarked on a drug discovery hackathon- this is a high-end hackathon where students are trained with information on how to do computational drug discovery: Principal Scientific Advisor (PSA) to the Government of India Prof K. Vijay Raghavan pic.twitter.com/8WhIexNpW9
— ANI (@ANI) May 28, 2020
देश के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में वैक्सीन बनाने के चार तरीकों के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने कहा, ‘पहला तरीका है, एमआरएनए वैक्सीन। इसमें वायरस के जैनेटिक मटीरयल लेकर उसी को इंजेक्ट कर लते हैं। हमारा शरीर उसे ट्रांसलेट करके वायरल प्रोटीन बनाता है। फिर जब वायरस शरीर में प्रवेश करता है तो इम्यून रिस्पांस तैयार होता है। दूसरा तरीका है, स्टैंडर्ड वैक्सीन। इसमें वायरस का कमजोर वर्जन लेते हैं। हमारे यहां रोटावैक वैक्सीन आया था, वो रोटावैक स्ट्रेन से बनाया गया था। कोविड-19 के लिए भी यह प्रयास हो रहा है। तीसरी पद्धति में किसी और वायरस के बैकबोन में इस वायरस के प्रोटीन कोडिंग रीजन को लगाकर वैक्सीन बनाते हैं। चौथे तरीके में वायरस का प्रोटीन लैब में बनाकर दूसरे स्टिमूलस के साथ लगाते हैं।’ डॉ. राघवन ने कहा कि दुनियाभर में इन्हीं चार तरीकों से वैक्सीन तैयार करने की प्रक्रिया चल रही है।