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कोरोना ने शिक्षा जगत में चुनौती के साथ कई नये अवसर भी प्रदान किये

कोरोना काल का यह समय हमारी युवा पीढ़ी में सकारात्मक बदलाव के उस दौर का साक्षी बना कि जब यूट्यूब पर फिल्मी, नॉन फिल्मी गानों की बजाए एजुकेशनल वीडियो ट्रेंड करने लगे और यूट्यूब ने शिक्षा के लेटेस्ट प्लेटफार्म का रूप ले लिया।

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देश भर में बोर्ड परीक्षाओं की घोषणा के साथ ही वर्तमान शिक्षण सत्र समाप्ति की ओर है। आज़ाद भारत के इतिहास में यह पहला ऐसा सत्र है जो स्कूल से नहीं बल्कि ऑनलाइन संचालित हुआ है। दरअसल कोरोना काल वाकई में सभी के लिए चुनौतीपूर्ण रहा है, हमारे बच्चों के लिए भी, उनके शिक्षकों के लिए भी और उनके अभिभावकों के लिए भी।

लेकिन इसके बावजूद आज अगर हम पीछे मुड़कर बीते हुए साल को एक सकारात्मक नज़रिए से देखें तो हम कह सकते हैं कि कोरोना काल भले ही हमारे सामने एक चुनौती के रूप में आया हो परन्तु यह काल अनजाने में शिक्षा के क्षेत्र में हमारे छात्रों के लिए अनेक नई राहें और अवसर भी लेकर आया है।

देखा जाए तो जीतने वाले और हारने वाले में यही तो अंतर होता है कि हारने वाला संकट के आगे घुटने टेक देता है जबकि जीतने वाला उस संकट में अवसर तलाश लेता है। इसलिए आज अगर यह कहा जाए कि कोरोना काल में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आए हैं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।

क्योंकि आधुनिक टेक्नोलॉजी के दम पर आज हमारे छात्रों के सामने शिक्षा हासिल करने के विभिन्न मंच और माध्यम उपलब्ध हैं। स्कूल की कक्षाएं जो ऑनलाइन चल रही थीं उसके अलावा छात्रों के पास आज ये विकल्प है कि वे किस विषय को किस से और कब पढ़ना चाहते हैं।

यूट्यूब पर विभिन्न विषयों के विभिन्न जानकारों द्वारा अनेक वीडियो आसानी से उपलब्ध हैं वो भी बिना किसी शुल्क के। इतना ही नहीं बल्कि यूट्यूब पर तो एक ही टॉपिक पर अनेकों शिक्षकों के अनेकों वीडियो बेहद सरलता से मिल जाते हैं।

कल्पना कीजिए जो छात्र पहले स्कूल जाता था फिर घर आकर खाना भी मुश्किल से खा पाता था कि उसके कोचिंग क्लास जाने का समय हो जाता था। आने जाने में समय लगने के अलावा वापस आने के बाद उसे स्कूल और कोचिंग दोनों का होमवर्क करना होता था। इसके अलावा कोचिंग क्लास में अगर किसी शिक्षक का पढ़ाने का तरीका पसन्द नहीं आ रहा तो भी मजबूरी में उसी से पढ़ना पड़ता था क्योंकि सालभर की फीस जो पहले से दे दी होती थी।

लेकिन आज वो छात्र घर बैठे अपनी सुविधानुसार समय पर अपनी पसंद के शिक्षक से पढ़ सकता है और तो और, अगर वो चाहे तो दूसरी लिंक पर जाकर किसी अन्य शिक्षक से भी पढ़ सकता है जिसके लिए उसे कोई शुल्क भी नहीं देना। सोचिए कि एक छात्र के लिए इससे बेहतर क्या हो सकता है? शायद कुछ नहीं। शायद इसलिए हमारे छात्रों ने भी इस अवसर का भरपूर फायदा उठाया।

परिणामस्वरूप कोरोना काल का यह काल हमारी युवा पीढ़ी में सकारात्मक बदलाव के उस दौर का साक्षी बना कि जब यूट्यूब पर फिल्मी, नॉन फिल्मी गानों की बजाए एजुकेशनल वीडियो ट्रेंड करने लगे और यूट्यूब ने शिक्षा के लेटेस्ट प्लेटफार्म का रूप ले लिया।

लेकिन यहाँ यह उल्लेख करना भी आवश्यक है कि आज आधुनिक तकनीक से शिक्षा हासिल करने के लिए सिर्फ यूट्यूब ही एकमात्र प्लेटफार्म नहीं रह गया है। सरकार ने भी वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए और विशेष रूप से उन छात्रों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए जो आर्थिक रूप से उतने सक्षम नहीं हैं या फिर जिन्हें लैपटॉप, स्मार्ट फोन, इंटरनेट, ब्रॉडबैंड जैसी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं, उन तक भी शिक्षा की उपलब्धता हो इस हेतु अनेक सरल माध्यमों से शिक्षा देने के उद्देश्य से विभिन्न कदम उठाए हैं।

जैसे ई पाठशाला पोर्टल जिसमें कक्षा एक से बारहवीं तक की एनसीईआरटी की किताबें और संबंधित सामग्री उपलब्ध है। स्वयं पोर्टल जिस पर 9वीं कक्षा से लेकर पोस्ट ग्रेजुएशन तक पढ़ाए जाने वाले विभिन्न एकेडमिक कोर्सेस और डिप्लोमा कोर्स उपलब्ध हैं।

इसी प्रकार प्रधानमंत्री ई विद्या योजना के तहत डिजिटल शिक्षा एजुकेशन चैनल, कम्युनिटी रेडियो जैसे माध्यमों से दी जाएगी जिसमें हर कक्षा के लिए एक चैनल होगा। दिल्ली सरकार ने तो विश्व का पहला वर्चुअल स्कूल खोलने की घोषणा कर दी है जहाँ ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाई कराई जाएगी और इसमें देश भर के बच्चे पढ़ सकेंगे। लेकिन पढ़ाई के अलावा कोविड-19 की मौजूदा परिस्थितियों में छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण के लिए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा “मनोदर्पण” पहल की भी शुरूआत की गई है जो छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों के मानसिक एवं भावनात्मक कल्याण के लिए एक स्थायी मनोसामाजिक सहायता प्रणाली के रूप में कार्य करेगा। इन परिस्थितियों ने इस कहावत को चरितार्थ कर दिया है कि आवश्यकता अविष्कार की जननी है। क्योंकि आज हमारे छात्रों के पास ज्ञान और शिक्षा दोनों के असीमित स्रोत मौजूद हैं जो पहले भी थे लेकिन शायद अव्यवहारिक प्रतीत होते थे कोरोना काल ने उन्हें प्रासंगिक बना दिया।

-डॉ. नीलम महेंद्र
(लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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