सिर्फ लॉकडाउन लगा कर नहीं जीती जा सकती कोरोना से लड़ाई
देश में कोरोना काल की सबसे भयावह तस्वीर हमारे सामने आने लगी है। कोरोना की दूसरी लहर की सूचना जब इंग्लैण्ड सहित यूरोपीय देशों से आने लगी थी तो हम उत्साहित थे कि हमारे यहां दूसरी लहर इसलिए नहीं आएगी कि सरकार द्वारा एहतियाती कदम उठाए जाने लगे हैं। लंबे लॉकडाउन और कोराना के कारण पटरी से उतरी आर्थिक गतिविधियों के ठप्प होने से आम आदमी भी रूबरू हो गया था। रोजगार पर संकट आ रहा था तो कारोबार सिमट रहा था। ऐसे में यह माना जाने लगा था कि आम आदमी इससे सबक लेगा। फिर सबसे बड़ा हथियार हमारा वैक्सीनेशन कार्यक्रम था और लगने लगा था कि ज्यों-ज्यों वैक्सीनेशन का दायरा बढ़ता जाएगा कोरोना संक्रमण स्वतः ही अंतिम सांस ले लेगा। पर परिणाम इससे इतर सामने आने लगे हैं जिससे केन्द्र व राज्यों की सरकारें चिंतित हो गई है। है भी चिंता की बात। कोरोना का असर सबसे ज्यादा महाराष्ट्र सहित 10 राज्यों में देखा जा रहा है। हालांकि देश के 23 राज्यों में कोरोना की दूसरी लहर आने की बात सरकार स्वयं मान रही है। देश में कोरोना से मौत के मामले भी बढ़ रहे हैं। हालांकि इस बात पर संतोष किया जा सकता है कि देश में कोरोना वैक्सीनेशन में तेजी आई है और लोग वैक्सीनेशन को लेकर जागरूक होने लगे हैं।
कोरोना के नए दौर को देखते हुए महाराष्ट्र में कई स्थानों पर लाकडाउन लगाया गया है तो राजस्थान सहित देश की कई राज्य सरकारों ने सख्त कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं मॉनिटरिंग कर रहे हैं तो राज्यों की सरकारें भी गंभीर हुई हैं। राजस्थान सरकार शुरू से ही गंभीर रहने के साथ ही ‘हम सतर्क हैं’ की टैगलाइन के साथ काम कर रही है। वहीं राजस्थान में 19 अप्रैल तक आंशिक लॉकडाउन लगा दिया गया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत नियमित समीक्षा कर रहे हैं और आवश्यक निर्देश दिए जा रहे हैं। कोरोना प्रोटोकाल की पालना के लिए सख्ती का सहारा लेने के साथ ही 9वीं तक स्कूल, जिम, सिनेमा, स्विमिंग पूल आदि बंद करने के आदेश जारी किए जा चुके हैं।
हालांकि इस बात पर संतोष किया जा सकता है कि कोरोना प्रोटोकाल की पालना को लेकर राज्यों की सरकारें सजग रही हैं पर सख्ती के अभाव में लापरवाही के कारण कोरोना के नए मामले तेजी से बढ़ने लगे हैं। कोरोना के बढ़ते संक्रमण और वैक्सीनेशन के बीच देश में करवाए गए एक सर्वे में सामने आया है कि कोरोना प्रोटोकाल की पालना नहीं होती तो शायद देश में प्रतिदिन दो से ढाई लाख तक मामले सामने आते। हालांकि यह भी दावा किया गया है कि कोरोना की रोकथाम के लिए दवा के स्थान पर बचाव के उपाय अधिक कारगर साबित हो रहे हैं। सरकारों के अवेयरनेस कार्यक्रमों में भी बचाव को ही बेहतर उपाय बताया जा रहा है। सवाल यह है कि सरकारों के सख्त प्रावधानों के बावजूद कोरोना की रफ्तार में एकाएक तेजी किस कारण से आ रही है। आज दुनिया के देशों में कोरोना संक्रमण के एक दिनी मामलों में हम शीर्ष पर पहुंच गए हैं। यह गंभीर चिंता का कारण है।
एक बात साफ हो जानी चाहिए कि कोरोना से लड़ाई केवल और केवल लॉकडाउन से नहीं लड़ी जा सकती। लॉकडाउन को तो अंतिम विकल्प के रूप में ही देखा जाना चाहिए। लोग लॉकडाउन के कारण बहुत कुछ खो चुके हैं। थोड़ी-सी सावधानी ही हमें इससे बचा सकती है। यही कारण है कि अब सरकार पांच सूत्री रणनीति लागू करने जा रही है। इसमें टेस्टिंग, ट्रेसिंग और ट्रीटमेंट के साथ ही कोविड बचाव संबंधी सावधानियां और टीकाकरण में तेजी लाना शामिल है। सरकार की रणनीति अपनी जगह सही है पर नए संक्रमण को रोकने में सबसे ज्यादा जो चीज कारगर हो सकती है वह है आम नागरिकों द्वारा कोरोना प्रोटोकाल की सख्ती से पालना। सरकार को भी कोरोना प्रोटोकाल की पालना के लिए सख्ती करनी ही होगी। दो गज की दूरी, मास्क जरूरी और बार-बार हाथ धोने की पालना ही तो करनी और करानी है। इसमें भी सरकार के जिम्मे मास्क जरूरी की पालना कराना है। कोई भी हो, कितना भी प्रभावी हो, मास्क नहीं पहने हो तो जुर्माना और सजा जो भी हो उसकी सख्ती से पालना करवाई जाए। इसमें किसी तरह की रियायत नहीं होनी चाहिए। पिछले एक साल के कोरोना काल का विश्लेषण किया जाए तो जिस-जिस देश की सरकार ने कोरोना काल में सख्ती की है उसे वहां की जनता ने सराहा है और कड़े फैसलों का समर्थन किया है। जहां ढुलमुल रवैया रहा वहां राजनीतिक अस्थिरता भी देखने को मिल रही है। ऐसे में कोरोना प्रोटोकाल की पालना में किसी तरह की रियायत नहीं होनी चाहिए।
एक और सरकारों को सार्वजनिक परिवहन वाहनों, यातायात के साधनों और बाजारों, माल्स आदि में सख्ती से पालना करानी होगी तो राहगीरों, स्ट्रीट वेंडरों, ठेलों-खोमचों वालों पर भी मास्क पहनने की सख्ती करनी ही होगी। सबसे बड़ी बात यह कि मानवता को बचाने के लिए यदि कोरोना संक्रमण काल के लिए सार्वजनिक आयोजनों पर कार्यक्रमों पर सख्ती से पाबंदी लगा दी जाए तो यह कारगर उपाय हो सकता है। आखिर किसी एक की नासमझी का खामियाजा अन्य लोगों को क्यों भुगतना पड़े। हालांकि इस पर दो राय हो सकती है पर मेरा मानना है कि देश में निचले स्तर से लेकर विधान सभाओं और अन्य उपचुनावों को स्थगित रख दिया जाए तो कोरोना संक्रमण पर प्रभावी रोक लगाई जा सकती है। यदि पुराने चुने हुए लोग साल दो साल ज्यादा भी काम कर लें तो इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला है जबकि चुनावों के कारण चुनावी रैलियां व अन्य गतिविधियां बढ़ने से प्रोटोकाल की पालना की बात करना बेमानी ही है। इसी तरह से सभी तरह के प्रदर्शनों पर भी सख्ती से रोक लगा देनी चाहिए। धारा 144 की सही मायने में पालना यानि की पांच से अधिक लोग एकत्रित ना हों, मास्क नहीं लगाने पर सख्ती से वसूली और सोशल डिस्टेंसिंग की पालना में सख्ती होगी तभी कोरोना के खिलाफ जंग जीती जा सकती है।
-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा