शिक्षा निती मे मुलभुत बदलाव की जरूरत
कोई भी देश वर्तमान में कितना भी शक्तिशाली, समृद्ध, संपन्न, विकासशील हो जाये परंतु उसका भविष्य नयी पीढी अर्थात आज के बच्चों,युवाओं से होता है। आज के बच्चै कल के युवा व देश का भविष्य तय करेंगे। बच्चों को जैसी शिक्षा, संस्कार मिलेंगे वैसे ही देश का भविष्य बनेगा। इसलिये देश के भविष्य निर्माण में शिक्षा का अग्रणी स्थान होता है। इसलिए देश की शिक्षा निती, शिक्षा का ढांचा भविष्य के चुनौतियों, जरूरतो का आकलन करते हुए सोच समझकर बनाना जरूरी होता हैं। हम अगर निश्पक्ष रुप से हमारे देश की शिक्षा निती ढांचे का पिछले ६०-७० सालों का आकलन करें तो उसमे बहुत ढांचागत व बुनियादी गलतियां मिलेगी। स्विजरलैंड की जितनी आबादी है हम उतने इंजीनियर हर साल बनाते हैं फिर भी “रिसर्च एंड ईनोवेशन” मे स्विट्जरलैंड नं एक बनकर हमसे बहुत आगे है।। हमारी इतनी बडी जनसंख्या, प्राचीन सभ्यता, संस्कृति, शिक्षा क्षेत्र होने के बाद भी हम अब तक सिर्फ ९ नोबल लौरियट पैदा कर सके जबकि ३३६ नोबल लौरियट के साथ अमेरिका नं एक पर है।
एक सर्वे के अनुसार हमारे ८३% पढे लिखे ग्रैजुएट्स, इंजीनियर अपने जाँब के लायक नहीं है।
प्राचीन काल में एक समय था जब हमारी शिक्षा प्रणाली दुनियाभर में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती थी। हमारे ऋषि मुनी, धर्म गुरु अपने अपने आश्रम मे गुरुकुल चलाते थे जहां अमीर-गरीब, राजा-प्रजा, राजकुमार व साधारण जनता के बच्चे बिना किसी भेदभाव के साथ में शिक्षा ग्रहण करते थे व शिक्षा सबका मौलिक अधिकार हुआ करता था। इसका सबसे बडा फायदा यह होता था कि बच्चों को बचपन से हर माहौल, परिस्थितियों की समझ व जानकारी होती थी व राजकुमार को राज्य का राजा व मंत्रियों को मंत्री बनने से पहले ही आम जनता की हर तकलीफ समस्या का पुरा ज्ञान रहता था। श्रीकृष्ण सुदामा की दोस्ती सबको ज्ञात है और यही सही मायने में सच्चा समाजवाद था। आजके समय हमारी शिक्षा का पुरी तरह व्यावसायीकरण, बाजारीकरण व राजनितीकरण हो गया है।
अगर हम इतिहास में जायेंगे तो इसकी शुरुआत अंग्रैजो ने की।
वो जब भारत मे आये तो उन्हें भारतीयों से काम कराने में मुलत: दो तकलीफ हुई।
१) पहली समस्या भाषा की समस्या क्योंकि यहां के लोगों को इंग्लिश नहीं आती थी।
२)दुसरा उन्हें सिर्फ टेबल पर बैठकर उनके आदेशों अनुसार बिना दिमाग,स्किल करनेवाले कर्मचारी चाहिए थे। सो थोमस वैमिंगटन मैकाँय के नेतृत्व में बनी पाँच सदस्यों की कमेटी ने “द इंग्लिश ऐज्युकेशन ऐक्ट १९३५” तहत शिक्षा नीति मे पूर्ण बदलाव कर दिया गया।
इस ऐक्ट ने भारत की शिक्षा क्षेत्र की दशा, दिशा, उद्देश्य सब बदल दिया।
नतीजा हमारी शिक्षा मे सिर्फ अग्रेंजी समझने वाले टेबल पर बैठकर मशीन की तरह आदेश मानने वाले कर्मचारी पैदा होने लग गये। हमारी सबसे बड़ी गलती यह हुई कि १९४७ मे आजादी के बाद भी हम यह हमारी गलतियों को समझा नहीं व सुधारा नहीं।आज हम पिछले ७०-७५ वर्षों का आकलन करें तो जितने भी सफलतम व्यक्ति हुये धनश्याम दासजी बिडला, धीरुभाई अंबानी, रतन टाटा, नरेन्द्र भाई मोदी सब अपने खुदके काबिलियत पर यशस्वी हुये। विदेशों में भी भारतीय मुल के सभी यशस्वी लोगों ने अपनी शिक्षा विदेशों में ग्रहण की।
अगर हम पुरी ईमानदारी से सच्चाई स्वीकार करे तो शिक्षा पुरी तरह राजनिती व राजनेताओं के हाथों का एक सशक्त माध्यम, हथियार बन गया । इस कारण शिक्षा के स्तर मे बहुत गिरावट आ गयीं व हमारी शिक्षा सिर्फ नौकरी पाने व पैसा कमाने का माध्यम बन कर रह गयीं। आजकी सच्चाई यह है कि शिक्षा क्षेत्र काफी हद तक राजनेताओं की दुकान बनकर उनके लिये पैसा कमाने का व अपने राजनैतिक महत्वाकांक्षा पुरी करने के लिये कार्यकर्ताओं की फौज खडी करने का साधन बन गयीं। पहले सरकारी स्कूलों, कालेजों मे अध्यापकों, शिक्षकों को पढाने का अनुभव, शिक्षा का ज्ञान व उनका छात्रों के प्रति मनोवैज्ञानिक लगाव होता था। शिक्षक अपने हर एक छात्र को जानते, पहचानते थे और हर एक छात्र पर उनका पुरा ध्यान रहता था। धीरे धीरे प्रायवेट स्कूलों, कालेजों को आगे बढाने के लिये सरकारी स्कूल, कालेज का स्तर गिराकर, बुनियादी सुविधाओं को धीरे धीरे कम करके व सरकारी स्कूलों को पुरी तरह दुर्लक्ष्य करके छात्रों को प्रायवेट स्कूल, कालेजों की ओर आकर्षित किया गया। प्रायवेट स्कूल कालेज सिर्फ़ नाम के लिये रह गये व ट्यूशन क्लासेस का वर्चस्व हो गया। प्रायवेट शिक्षा संस्थानों, शिक्षकों का मुल उद्देश्य पैसा कमाना होने के कारण स्कूलों, कालेजों मे शिक्षा का स्तर गिरता गया व ट्यूशन क्लासेस की तरफ रुझान बढता गया। धीरे धीरे शिक्षा महंगी, खर्चिली होती जा रही व आम आदमी पहुंच से बाहर होती जा रही। स्कूलों, कालेजों के कर्णधार, शिक्षक ट्यूशन क्लासेज मे ज्यादा दिलचस्पी लेने लग गये और वे खुद बच्चों को परोक्ष, अपरोक्ष रुप से ट्यूशन क्लासेस की ओर भेजने लग गये। ट्यूशन क्लासेस का जाल कैंसर की तरह दीमक बनकर हमारे समाज, बच्चों के भविष्य को खा रहा है ।
हर आदमी अपने बच्चों को अच्छा पढाना चाहता है इसलिये आम आदमी हर तकलीफ, मुसीबत सहकर, कर्जा लेकर भी बच्चों को पढाने की पुरी कोशिश कर रहा हैं। यह सारी समस्याएं, गलतियां हम सब जानते है इसलिये अब शिक्षा निती मे क्या सुधार किया जाये इस पर विचार मंथन जरूरी है।सारी गलतियों के लिए सिर्फ सरकार ही अकेली जिम्मेदार नहीं है। सुधार सरकारी स्तर पर, सामाजिक स्तर पर व परिवार माता पिता स्तर पर जरुरी है।माता पिता के स्तर पर पैरेंट्स को बच्चों के लिए कोई भी निर्णय लेने से पहले अपने खुद के बच्चों की रुचि,बच्चे की बौद्धिक, मानसिक, शारिरिक क्षमता समझना जरूरी है। पैरेंट्स ने अपने बच्चों की तुलना किसी दुसरे बच्चों से नही करनी चाहिए। हर एक बच्चै मे अलग अलग प्रतिभा, रुचि, गुण व कमजोरी होती है जिसे समझकर बच्चों को प्रौत्साहन देना जरूरी है। हर बच्चा इंजीनियर, डॉक्टर, वकील बनने या ९८% लेकर मेरिट मे आने के लिए नही होता। परिवारिक व सामाजिक माहौल में भी हमनें किसी भी बच्चे को दुसरे से तुलना कर हतोत्साहित नही करना चाहिए।
सरकारी तौर पर सबसे पहले सरकार ने यह बात बुनियादी रुप से समझना चाहिए कि देश का हर बच्चा देश का भविष्य, असेट है। प्राथमिक शिक्षा उसका मुलभुत अधिकार है। सरकारी शिक्षण संस्थाओं मे सभी तरह के जरूरी मुलभुत ढांचा, उच्चतम सुविधाएं दी जाये। गरीब से मध्यम वर्ग परिवार के बच्चों को सरकारी स्कूलों मे भी प्रायवेट स्कूलों समकक्ष उच्च सुविधाएं, शिक्षा मिलनी चाहिए ताकि लोगों का रुझान प्रायवेट क्षेत्र से कम हो जाये। पढेलिखे बेरोजगार युवाओं को ट्रेनिंग देकर प्रौफेशनल शिक्षक बनने के लिए प्रौत्साहित करना चाहिए। पढे लिखे बेरोजगार युवाओं को बैंक से आसान शर्तों व कम ब्याज पर पूंजी दिलाकर शिक्षा संस्थान खोलने को प्रैरित करें।इससे एक तो पढेलिखे युवाओं को रोजगार मिलेगा दुसरी ओर शिक्षा क्षेत्र में स्वस्थ स्पर्धा होने से शिक्षा सस्ती, आसान व सुलभ होगी। शिक्षा का मकसद सिर्फ नौकरी करना नही होना चाहिये, शिक्षा का मुल मकसद बच्चों, युवाओं को आने वाली हर चुनौतियों, स्पर्धाओं, जरूरतों के लिये तैयार करना। प्रारंभिक स्कूल की शिक्षा के बाद बच्चों को उनकी रुचि, क्षमताओं, जरुरतों के हिसाब से स्किल, हुनर सिखाया जा सकता है ताकि वे अपने बलबूते पर खुद का रोजगार कर सके। नौकरी ढुंढने के बजाय वह दुसरो को नौकरी देने लायक बन सके। शायद यह सब बातें आज हमें सपना लगे परंतु अगर हम अपना इतिहास देखें तो भुतकाल मे हमारी शिक्षा निती के कारण ही हमारा भारतवर्ष सोने की चिडिया कहलाता था और आज दुसरे विकसित देशों में हमारे ग्रंथों, किताबों व संस्कृत भाषा पर रिसर्च हो रही है। हमारे ग्रंथों, पुराणों में आज के विज्ञान के हर प्रश्नों के उत्तर छिपे है। आज जरूरत है हमारी प्राचीन बौद्धिक संपदा, ज्ञान को समझकर भविष्य के जरूरत के हिसाब से पुरी ईमानदारी से भविष्य के उर्जावान युवाओं को तैयार करने के लिए शिक्षा निती, पाठ्यक्रम मे बदलाव करने की।
शरद गोपीदासजी बागडी
Portfolio consultant, Writer & Social worker. नागपुर (महाराष्ट्र)
www.sharadbagdi.com