fbpx

देश की राजनीति की दिशा तय करेंगे पांच राज्यों के चुनाव परिणाम

तुष्टिकरण की राजनीति को सबका साथ सबका विकास और वोटबैंक की राजनीति को विकास की राजनीति चुनौती दे रही है। यही कारण है कि इन पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम देश की राजनीति की दिशा तय करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सिद्ध होंगे।

Like, Share and Subscribe

चार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। जहां पुडुचेरी, केरल और तमिलनाडु में 6 अप्रैल को एक ही चरण में चुनाव होंगे वहीं पश्चिम बंगाल में आठ चरणों तो असम में तीन चरणों में चुनावों का आयोजन आयोग द्वारा किया गया है। भारत केवल भौगोलिक दृष्टि से एक विशाल देश नहीं है अपितु सांस्कृतिक विरासत की दृष्टि से भी वो अपार विविधता को अपने भीतर समेटे है। एक ओर खान पान, बोली, मजहबी एवं धार्मिक मान्यताओं की यह विविधता इस देश को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध तथा खूबसूरत बनाती है तो दूसरी ओर यही विविधता इस देश की राजनीति को जटिल और पेचीदा भी बनाती है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में देश की राजनीति की दिशा में धीरे-धीरे किंतु स्पष्ट बदलाव देखने को मिल रहा है।

तुष्टिकरण की राजनीति को सबका साथ सबका विकास और वोटबैंक की राजनीति को विकास की राजनीति चुनौती दे रही है। यही कारण है कि इन पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम देश की राजनीति की दिशा तय करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सिद्ध होंगे। इतिहास में अगर पीछे मुड़कर देखें तो आज़ादी के बाद देश के सामने कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर कोई और विकल्प मौजूद नहीं था। धीरे-धीरे क्षेत्रीय दल बनने लगे जो धीरे-धीरे अपने अपने क्षेत्रों में मजबूत होते गए। लेकिन ये दल क्षेत्रीय ही बने रहे, अपने-अपने क्षेत्रों से आगे बढ़कर राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का विकल्प बनने में कामयाब नहीं हो पाए। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी रहा कि समय के साथ ये दल अपने अपने क्षेत्रों में कांग्रेस का मजबूत विकल्प बनने में अवश्य कामयाब हो गए। आज स्थिति यह है कि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय स्तर की पार्टी इन क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ कर अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है।

वहीं आम चुनावों में कांग्रेस की स्थिति का आकलन इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि वो लगातार दो बार से अपने इतने प्रतिनिधियों को भी लोकसभा में नहीं पहुंचा पा रही कि सदन को नेता प्रतिपक्ष दे पाए। उसे चुनौती मिल रही है एक ऐसी पार्टी से जो अपनी उत्पत्ति के समय से ही तथाकथित सेक्युलर सोच वाले दलों ही नहीं वोटरों के लिए भी राजनैतिक रूप से अछूत बनी रही। 1980 में अपनी स्थापना, 1984 के आम चुनावों में में मात्र दो सीटों पर विजय, फिर 1999 में एक वोट से सरकार गिरने से लेकर 2019 लोकसभा चुनावों में 303 सीटों तक का सफर तय करने में बीजेपी ने जितना लम्बा सफर तय किया है उससे कहीं अधिक लम्बी रेखा अन्य दलों के लिए खींच दी है। क्योंकि आज वो पूर्ण बहुमत के साथ केवल केंद्र तक सीमित नहीं है बल्कि लगभग 17 राज्यों में उसकी सरकारें हैं। वो दल जो केवल हिंदी भाषी राज्यों तक सीमित था आज वो असम में अपनी सरकार बचाने के लिए मैदान में है तथा केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी जैसे राज्यों में अपनी जड़ें जमा रहा है तो पश्चिम बंगाल में सत्ता का प्रमुख दावेदार बनकर उभरा है।

असम की अगर बात करें तो घुसपैठ से परेशान स्थानीय लोगों की वर्षों से लंबित एनआरसी की मांग को लागू करना, बोडोलैंड समझौता, बोडो को असम की ऑफिशियल भाषा में शामिल करना, डॉ. भूपेंद्र हज़ारिका सेतु, बोगिबिल ब्रिज, सरायघाट ब्रिज जैसे निर्माणों से असम को नार्थ ईस्ट के अलग-अलग हिस्सों से जोड़ना। कालीबाड़ी घाट से जोहराट का पुल और धुबरी से मेघालय में फुलबारी तक पुल जो असम और मेघालय की सड़क मार्ग की करीब ढाई सौ किमी की वर्तमान दूरी को मात्र 19 से 20 किमी तक कर देगा, जैसे विकास कार्यों के साथ भाजपा की वर्तमान सरकार जनता के सामने है। वहीं अपनी खोई जमीन पाने के लिए संघर्षरत कांग्रेस ने पुराने तर्ज़ पर ही चलते हुए, सत्ता में आने पर सीएए को निरस्त करना, सभी परिवारों को 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त देना, राज्य की हर महिला को 2000 रुपए प्रति माह देना और 5 लाख नौकरियां देने जैसे वादे किए हैं।

बंगाल की बात करें तो यहाँ लगभग 34 वर्षों तक शासन करने वाली लेफ्ट और 20 वर्षों तक शासन करने वाली कांग्रेस दोनों ही रेस से बाहर हैं। विगत दो बार से सत्ता पर काबिज़ तृणमूल का एकमात्र मुख्य मुकाबला भाजपा से है। उस भाजपा से जिसका 2011 के विधानसभा चुनावों में खाता भी नहीं खुला था। इससे भी दिलचस्प बात यह है कि जिस हिंसा और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर ममता बनर्जी ने वाम का 34 साल पुराना किला ढहाया था आज उनकी सरकार के खिलाफ भाजपा ने उसी हिंसा और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया है।

केरल की अगर बात करें तो यहाँ लेफ्ट और कांग्रेस आमने सामने हैं, यह अलग बात है कि अन्य राज्यों में लेफ्ट उसकी सहयोगी होती है। अभी तक ऐसा देखा गया है कि हर पाँच साल में दोनों बारी-बारी से सत्ता में आते हैं इसलिए कांग्रेस को उम्मीद है कि इस बार उसकी सत्ता में वापसी हो सकती है। क्या होता है यह तो समय ही बताएगा लेकिन चूंकि राहुल गांधी केरल से लोकसभा पहुंचे हैं तो जाहिर तौर पर कांग्रेस के लिए केरल की जीत मायने रखती है। भाजपा की अगर बात करें तो 2011 में उसे केरल विधानसभा में मात्र एक सीट मिली थी और इस बार वो मेट्रो मैन ई. श्रीधरन की छवि और अपने विकास के वादे के साथ मैदान में है। वहीं अपनी सत्ता बचाने के लिए मैदान में उतरे लेफ्ट ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए चुनावों से पहले सबरीमाला से जुड़े सभी केसों को वापस लेने का फैसला लिया है। जाहिर है गैर हिंदी भाषी केरल में भाजपा वर्तमान में अवश्य अपनी जमीन तलाश रही है लेकिन उसकी निगाहें भविष्य पर हैं। यही कारण है कि कांग्रेस और लेफ्ट भले ही केरल में एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हैं लेकिन दोनों का ही मुख्य मुकाबला भाजपा से है।

पुडुचेरी की अगर बात करें तो यहाँ की कांग्रेस सरकार चुनावों से ऐन पहले गिर गई। यह दक्षिण में कांग्रेस की आखिरी सरकार थी। यहाँ भी भ्रष्टाचार मुख्य चुनावी मुद्दा है। राहुल गांधी के पुडुचेरी दौरे पर एक महिला की शिकायत का मुख्यमंत्री द्वारा गलत अनुवाद करने का वीडियो पूरे देश में चर्चा का विषय बना था और पुडुचेरी सरकार की हकीकत बताने के लिए काफी था। हालांकि यहाँ भी भाजपा का अब तक कोई वजूद नहीं था लेकिन आज वो मुख्य विपक्षी दल है।

तमिलनाडु एक ऐसा प्रदेश है जहाँ हिंदी भाषी नेता लोगों को आकर्षित नहीं करते। लेकिन ऐसा 40 सालों में पहली बार होगा जब यहाँ के दो दिग्गज जयललिता और करुणानिधि के बिना चुनाव होने जा रहे हैं। जयललिता छह बार और करुणानिधि पाँच बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इस बार भी टक्कर एआईएडीएमके और डीएमके के बीच ही है। डीएमके और कांग्रेस यहाँ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं जबकि भाजपा एआइएडीएमके के साथ गठबंधन में है। जयललिता या करुणानिधि जैसे चेहरे के अभाव में जनता किस को चुनती है यह तो समय बताएगा। यहाँ के चुनावी मुद्दे की बात करें तो सबसे बड़ा मुद्दा भाषा का होता है। दरअसल तमिल भाषा दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है। राहुल गांधी ने अपने हाल के दौरे में लोगों को भरोसा दिलाया कि तमिल यहाँ की पहली भाषा होगी, उन पर अन्य कोई भाषा नहीं थोपी जाएगी। वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने भी मन की बात कार्यक्रम में कहा कि उनमें एक कमी यह रह गई कि वो तमिल भाषा नहीं सीख पाए।

कहा जा सकता है कि बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी जहां कभी क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व था आज भाजपा वहाँ सबसे मजबूत विकल्प बनकर उभरी है। जाहिर है वर्तमान परिस्थितियों में इन राज्यों के चुनाव परिणाम ना सिर्फ इन राजनैतिक दलों का भविष्य तय करेंगे बल्कि काफी हद तक देश की राजनीति का भी भविष्य तय करेंगे।

-डॉ. नीलम महेंद्र
(लेखिका )

Like, Share and Subscribe

Leave a Reply

Your email address will not be published.Required fields are marked *