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ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव के जरिये बड़े सपने को पूरा करना चाहती है भाजपा

भाजपा की लगातार जीत की वजह यही मानी जाती है कि वो हर चुनाव का एजेंडा अपने हिसाब से तय करने में कामयाब हो जाती है और विरोधी दलों को उसके पिच पर आकर ही खेलना पड़ता है। हैदराबाद में भी भाजपा को अपनी रणनीति में कई बार कामयाबी मिलती नजर आई।

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देश में शायद ही कभी किसी नगर निकाय का चुनाव इतना अधिक चर्चा में रहा है जितनी चर्चा ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के चुनाव की हुई है। केन्द्र की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी ने जिस अंदाज में इस चुनाव को लड़ा है, जिस आक्रामकता के साथ चुनाव प्रचार किया, जिस पैमाने पर भारत सरकार के मंत्रियों को उतारा, चुनाव प्रभारी की विशेष नियुक्ति की। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा, यहां तक कि पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और वर्तमान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जितना समय हैदराबाद को दिया, उसने इस चुनाव को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना दिया।

भाजपा की रणनीति और असदुद्दीन ओवैसी का हमला

भाजपा नेताओं की इतनी बड़ी फौज ने निश्चित तौर पर हैदराबाद शहर पर राज कर रहे राजनीतिक दलों की नींद उड़ा दी। वैसे तो ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम पर तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.सी.आर की पार्टी का कब्जा है लेकिन देश-दुनिया में हैदराबाद की पहचान असदुद्दीन ओवैसी के शहर के तौर पर ज्यादा है। इसकी एक वजह शायद यह भी हो सकती है कि असदुद्दीन ओवैसी हाल के दिनों में मुस्लिम राजनीति के एक बड़े प्रतीक के तौर पर उभरे हैं। हाल ही में बिहार विधानसभा चुनाव में 5 सीटों पर मिली जीत से भी यही साबित होता दिख रहा है कि धीरे-धीरे असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों की पार्टी के रूप में उभरती जा रही है और अब इसका अगला निशाना दीदी का गढ़ पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव है। इसलिए भाजपा नेताओं ने हैदराबाद नगर निगम पर काबिज टीआरएस से ज्यादा तीखा हमला लगातार असदुद्दीन ओवैसी पर ही बोला। भाजपा नेताओं के हमले के जवाब में असदुद्दीन ओवैसी ने भी तीखा राजनीतिक हमला बोला। ओवैसी की पार्टी के स्थानीय नेताओं ने तो किसान आंदोलन के बावजूद गृह मंत्री अमित शाह के चुनावी दौरे पर निशाना साधा तो वहीं असदुद्दीन ओवैसी ने यह कह कर निशाना साधा कि यह चुनाव हैदराबाद निकाय का न होकर प्रधानमंत्री का हो गया है। ओवैसी ने कहा कि यह हैदराबाद चुनाव जैसा नहीं है, ऐसा लगता है जैसे हम नरेंद्र मोदी की जगह पीएम का चुनाव कर रहे हैं। भाजपा नेताओं की भीड़ पर कटाक्ष करते हुए ओवैसी ने कहा कि अब केवल ट्रंप को ही बुलाना बचा रह गया है।

चुनाव का एजेंडा सेट करने में कामयाब हुई भाजपा

भाजपा की लगातार जीत की सबसे बड़ी वजह यही मानी जाती है कि वो हर चुनाव का एजेंडा अपने हिसाब से तय करने में कामयाब हो जाती है और विरोधी दलों को उसके पिच पर आकर ही खेलना पड़ता है। हैदराबाद में भी भाजपा को अपनी रणनीति में कई बार कामयाबी मिलती नजर आई। विरोधियों ने कहा कि गली-मुहल्ले के चुनाव में भाजपा के दिग्गज नेता आ रहे हैं तो तुरंत पलटवार करते हुए अमित शाह ने कहा कि कोई चुनाव छोटा या बड़ा नहीं होता और ऐसा कह कर ओवैसी की पार्टी हैदराबाद की जनता का अपमान कर रही है।

इसी मुद्दे पर तीखा राजनीतिक हमला बोलते हुए भाजपा क राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने भी हैदराबाद की जनता के स्वाभिमान को छूने की कोशिश की। नड्डा ने कहा कि उनके यहां आने के पहले कहा गया कि गली के चुनाव के लिए एक राष्ट्रीय अध्यक्ष आ रहा है। क्या हैदराबाद गली है? 74 लाख वोटर, 5 लोकसभा सीट, 24 विधानसभा और करोड़ से अधिक जनसंख्या और ये इन्हें गली दिखती है।

हैदराबाद– निजाम और सरदार पटेल का इतिहास

हैदराबाद सिर्फ एक शहर ही नहीं है। हैदराबाद प्रतीक है भाजपा की राष्ट्रवादी भावना का क्योंकि इस शहर का इतिहास भारत की आजादी के कालखंड के शिखर पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल से जुड़ा हुआ है। सरदार पटेल, जिन्हें पिछले कुछ वर्षों से लगातार भाजपा जवाहर लाल नेहरू की तुलना में एक बड़े राष्ट्रवादी और कठोर प्रशासक के तौर पर उभारने की कोशिश कर रही है। दुनिया जानती है कि 1947 में पाकिस्तान की शह पर हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय से इंकार कर दिया था जबकि वहां की बहुसंख्य आबादी हिंदुओं की थी। उस समय अपने रणनीतिक कौशल और सैन्य बल का प्रयोग करते हुए सरदार पटेल ने निजाम को भागने पर मजबूर कर दिया था। भारतीय सेना के उसी अभियान के बाद हैदराबाद का विलय भारत में हो पाया और इसलिए हैदराबाद, भाजपा के लिए सिर्फ एक शहर ही नहीं है।

सिर्फ चुनाव नहीं भाजपा का सपना है हैदराबाद

1980 में गठन के बाद से ही भाजपा को मुख्यत: उत्तर भारत की ही पार्टी माना जाता रहा है। लेकिन उसी समय से लगातार भाजपा दक्षिण भारत में पांव जमाने की कोशिश कर रही है। सबसे पहले उसे कर्नाटक में कामयाबी मिली जहां वो आज भी सत्ता में है लेकिन केरल और अविभाजित आंध्र प्रदेश (तेलंगाना और आंध्र प्रदेश) में भाजपा को अभी तक बहुत बड़ी कामयाबी नहीं मिल पाई है। इन राज्यों को जीतने के मकसद से ही अटल-आडवाणी के युग में आंध्र प्रदेश के बंगारू लक्ष्मण और वेंकैया नायडू एवं तमिलनाडु के जन कृष्णमूर्ति को भारत सरकार में मंत्री बनाया गया, भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। वर्तमान मोदी सरकार में भी हैदराबाद के जी किशन रेड्डी गृह राज्य मंत्री के तौर पर सीधे अमित शाह के निर्देशन में काम कर रहे हैं।

आज की बात करें तो भाजपा, दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। संसद के दोनों सदनों- लोकसभा और राज्यसभा में भाजपा नंबर वन पार्टी है। देश के अधिकांश राज्यों में भी भाजपा की सरकारें हैं। लेकिन तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल जैसे राज्य अभी भी भाजपा के लिए एक सपना ही बने हुए हैं। हरियाणा ने भाजपा को यह सबक सिखाया है कि स्थानीय निकायों में मिली कामयाबी का बड़ा असर विधानसभा और लोकसभा चुनाव पर भी पड़ता है इसलिए पार्टी हैदराबाद में पूरी ताकत लगा रही है क्योंकि इस स्तर पर मिली कामयाबी का मनोवैज्ञानिक लाभ भाजपा को 2023 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव में भी मिल सकता है और ओवैसी की पार्टी को हराने का लाभ भाजपा को देशभर में मिल सकता है।

आपको बता दें कि ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम में राज्य के 4 जिले- हैदराबाद, रंगारेड्डी, मेडचल-मलकजगिरी और संगारेड्डी आते हैं। इस पूरे इलाके में 24 विधानसभा क्षेत्र और 5 लोकससभा की सीटें आती हैं। तेलंगाना की जीडीपी का बड़ा हिस्सा यहीं से आता है और इस नगर निगम का सालाना बजट लगभग साढ़े पांच हजार करोड़ का है। हैदराबाद नगर निगम में कुल 150 सीटें हैं। पिछले चुनाव में सबसे ज्यादा दो तिहाई सीट 99 तेलंगाना राष्ट्र समिति को मिली थीं। असदुद्दीन औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम ने 44 सीटों पर जीत दर्ज की थी जबकि भाजपा को महज चार सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। वर्तमान की बात करें तो तेलंगाना में कुल 119 विधायकों में से भाजपा के पास केवल 2 ही विधायक हैं हालांकि लोकसभा चुनाव में भाजपा को इस राज्य की कुल 17 लोकसभा सीटों में से 4 पर जीत हासिल हुई थी।

-संतोष पाठक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार)

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