fbpx

भारतीय वायु सेना के गौरवपूर्ण इतिहास और शौर्य की अद्भुत दास्तां

आज हमारी ‘भारतीय वायुसेना’ तेजी से समयानुसार अपना आधुनिकीकरण करके विश्व की सर्वोच्च श्रेष्ठ सेनाओं में से एक बन गयी है। आज अपने वीर शौर्यवान महावीर योद्धाओं के बलबूते और देश सेवा एवं देश सुरक्षा का जज्बा लेकर वो सशक्त राष्ट्र प्रहरी बन गयी है।

Like, Share and Subscribe

अपने बुलंद हौसले, अदम्य साहस, पराक्रम व शौर्य के बलबूते सम्पूर्ण विश्व में ‘भारतीय वायुसेना’ के जांब़ाजों की अलग ही धाक है, हमारी वायुसेना के जांब़ाज बेहद विकट से विकट व बेहद विषम परिस्थितियों के बीच एक क्षण में ही दुश्मन को आश्चर्यचकित करके रणभूमि में धूल चटाने में माहिर हैं। भारतीय वायुसेना का स्थापना दिवस प्रतिवर्ष 8 अक्तूबर को वायुसेना के जांब़ाजों के द्वारा बहुत साहसिक कार्यक्रमों का आयोजन करके बेहद गरिमापूर्ण गौरवशाली माहौल में धूमधाम से हर वर्ष मनाया जाता है। ‘भारतीय वायुसेना’ को दुनिया की चौथी सबसे बड़ी वायुसेना माना जाता है। वैसे ‘भारतीय वायुसेना’ को देश की सुरक्षा में लगी भारतीय सशस्त्र सेनाओं का सबसे नया अंग माना जाता है।

इतिहास

8 अक्तूबर 1932 को तत्कालीन भारतीय विधायिका द्वारा ‘भारतीय वायुसेना’ विधेयक पारित करने के साथ ही वायुसेना अस्तित्व में आई। हालांकि 1 अप्रैल 1933 को वायुसेना के पहले हवाई दस्ते का गठन हुआ, जो एक नंबर स्कवॉड्रन का हिस्सा बनी। इसमें छह रॉयल एयर फ़ोर्स प्रशिक्षित अधिकारी, 19 हवाई सिपाही और चार वेस्टलैंड वापिति आई.आई.ए. सैन्य सहयोग विमान थे। द्वितीय विश्व युद्ध के शुरू होने पर एक नंबर स्कवॉड्रन ‘भारतीय वायुसेना’ का एकमात्र संगठन था। उस समय हमारी वायुसेना में 16 अधिकारी और 662 सैनिक थे। वर्ष 1939 में देश के तत्कालीन नीति-निर्माताओं के द्वारा यह प्रस्ताव किया गया कि मुख्य बंदरगाहों की सुरक्षा के लिए पाँच हवाई दस्तों की स्वैच्छिक आधार पर व्यवस्था की जाए। जिसके अनुसार मद्रास (वर्तमान चेन्नई) पहला हवाई दस्ता, बंबई (वर्तमान मुम्बई) में दूसरा, कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में तीसरा, कराची (वर्तमान पाकिस्तान का हिस्सा) में चौथा, कोचिन (वर्तमान कोच्चि) में पाँचवां और बाद में विशाखापट्टनम में छठा हवाई दस्ता बनाया गया। वर्ष 1944 के अंत तक ‘भारतीय वायुसेना’ में धीरे-धीरे नौ स्कवॉड्रन बन चुके थे और वह धरातल पर बड़ा रूप लेने लगी थी।

‘भारतीय वायुसेना’ के पहले स्थापित वायु सेना केंद्र आगरा, पुणे, अंबाला चंडीगढ़ और बंगलोर में हैं। मार्च 1945 में भारतीय वायुसेना को ‘रॉयल’ का उपसर्ग दिया गया था। यह सम्मान उसे द्वितीय विश्व युद्ध में प्रशंसनीय योगदान के लिए दिया गया था। अगस्त, 1945 में युद्ध की स्थिति समाप्त होने पर ‘रॉयल इंडियन एयर फ़ोर्स’ में 28,500 कर्मी थे, जिनमें से 1,600 अधिकारी थे। 15 अगस्त 1947 को भारत की आज़ादी के समय ‘रॉयल इंडियन एयर फ़ोर्स’ की संपत्ति को भारत व पाकिस्तान के बीच विभाजित किया गया था। अग्र मोर्चे के 10 स्क्वॉड्रनों में से दो नवनिर्मित ‘रॉयल पाकिस्तान एयर फ़ोर्स’ को दिए गए। जनवरी 1950 में भारत के गणतंत्र बनने पर ‘रॉयल’ उपसर्ग को नाम से हटा दिया गया। उस समय ‘भारतीय वायुसेना’ के पास स्पिटफ़ायर, वैंपायर और टेंपेस्ट के छह लड़ाकू स्क्वॉड्रन थे। आने वाले वर्षों में इन स्क्वॉड्रनों की संख्या और बढ़ी। पुराने और घिस चुके वायुयानों व उपकरणों को वायुसेना से हटा दिया गया और उन्हें धीरे-धीरे बेहद अत्याधुनिक व बेहतरीन वायुयानों व उपकरणों से बदला गया। कुछ वर्ष पूर्व शामिल हुआ स्वदेशी तेजस विमान व अभी हाल ही में वायु सेना में शामिल हुआ राफेल विमान इसके आधुनिकीकरण का सशक्त उदाहरण हैं।

ध्येय वाक्य

हमारी गौरवशाली ‘भारतीय वायुसेना’ का ध्येय वाक्य संस्कृत में ‘नभस्पर्श दीप्तम्’ और अंग्रेजी में ‘टच दी स्काई विद ग्लोरी’ है। जबकि वायुसेना रक्षा का ध्येय वाक्य संस्कृत में ‘आकाशे शुत्रन् जहि’ और अंग्रेजी में ‘किल दी इनेमी इन दी स्काई’ है। अपने इन ध्येय वाक्यों के जबरदस्त उद्घोष के साथ ही हमारी वायुसेना के साहसी जांबाज दुश्मन पर साक्षात मौत बनकर टूट पड़ते हैं और युद्ध में अदम्य साहस पराक्रम का परिचय देकर विजय की नित नई शौर्यगाथा लिखकर देश के आम जनमानस को हमेशा गर्व करने का मौका बार-बार प्रदान करते हैं। ‘भारतीय वायुसेना’ के जांबाज रणबांकुरों ने अपने साहस शौर्य और पराक्रम के बल पर वीरता पदकों के मामले में भी अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज करवाई है। आज ‘परमवीर चक्र’, ‘महावीर चक्र’, ‘वीर चक्र’, ‘अशोक चक्र’, ‘कीर्ति चक्र’, ‘शौर्य चक्र’ जैसे वीरता के सर्वोच्च सम्मान वायु सेना की शान को नये आयाम प्रदान कर रहे हैं। इसके अलावा हजारों जाब़ाज भारतीय वायु सैनिकों को उनकी अनूठी बहादुरी के लिए ‘वायुसेना मैडल’, ‘एम. इन डी.’, ‘परम विशिष्ट सेवा मैडल’, ‘अति विशिष्ट सेवा मैडल’, ‘विशिष्ट सेवा मैडल’, ‘सर्वोत्तम युद्ध सेवा मैडल’, ‘उत्तम सेवा मैडल’, ‘युद्ध सेवा मैडल’ आदि से पुरस्कृत किया जा चुका है।

वायुवीरों की दास्तां

‘भारतीय वायुसेना’ के साहसी जांब़ाजों ने युद्ध के समय रणभूमि में अपना अतुलनीय योगदान देने के साथ-साथ दुनिया में शांति बहाली के अभियान में भी हमेशा अपना बेहद सराहनीय अनमोल योगदान दिया। इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशनों व अन्य प्रकार के सभी मिशनों में तो ‘भारतीय वायुसेना’ का हमेशा उत्कृष्ट प्रदर्शन रहा है। जिसके चलते सम्पूर्ण विश्व ‘भारतीय वायुसेना’ की कार्यप्रणाली व वीरता का बेहद कायल है। जब भी देश में कोई भी प्राकृतिक आपदा आई है चाहे वो केरल की बाढ़ हो या उत्तराखंड त्रासदी हो, इस दौरान वायुसेना के जांब़ाजों ने हमेशा उच्च कोटि का प्रदर्शन करके लोगों की जान बचाने का कार्य किया है। हमेशा वायुसेना के जांब़ाजों ने दुर्गम जगह पर राहत सामग्री पहुंचा कर लोगों के जीवन को सुरक्षित रखने में अपना अनमोल योगदान दिया है। इसके लिए हमारी वीर वायुसेना की जितनी सराहना की जाए वह बेहद कम है।

आज हमारी ‘भारतीय वायुसेना’ तेजी से समयानुसार अपना आधुनिकीकरण करके विश्व की सर्वोच्च श्रेष्ठ सेनाओं में से एक बन गयी है। आज अपने वीर शौर्यवान महावीर योद्धाओं के बलबूते और देश सेवा एवं देश सुरक्षा का जज्बा लेकर वो सशक्त राष्ट्र प्रहरी बन गयी है। हमारे देश की शान ‘भारतीय वायुसेना’ की पहचान सम्पूर्ण विश्व में अदम्य साहस, विपरीत परिस्थितियों में कार्य करने की अद्भुत क्षमता, निड़रता, जांबाजी, जल्द तैयारी की क्षमता, आक्रामक शैली, पलक झपकते ही शत्रुओं को मार गिराने की क्षमता एवं हमारे देश की नभ सीमा को सुरक्षित रखने की असाधारण क्षमता और अपनी उत्कृष्ट अनूठी सेवा एवं अभेद्य सुरक्षा व्यवस्था करने वाली जांब़ाज वायुसेना के रूप में होती है। आज प्रत्येक देशभक्त देशवासी ‘भारतीय वायुसेना’ के जांब़ाजों को वायुसेना दिवस की बधाई दे रहा है और देश पर अपने प्राण न्यौछावर करने वाले वायुसेना के सभी वीर जांब़ाजों को दिल से कोटि-कोटि नमन करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है।

-दीपक कुमार त्यागी
(स्वतंत्र पत्रकार, स्तंभकार व रचनाकार)

Like, Share and Subscribe

Leave a Reply

Your email address will not be published.Required fields are marked *