पीएम केयर्स फंड और प्रधानमंत्री राहत कोष में क्या अंतर है?
कोरोना वायरस से लड़ने के लिए भारत में पीएम केयर्स फंड की स्थापना की गई। लेकिन इसके साथ ही देश के बहुत सारे लोग इसपर सवाल उठाने लगे। कांग्रेस पार्टी समते कई बुद्धिजीवियों ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि पीएम केयर्स पारदर्शी नहीं है और इसका सारा पैसा पीएम नेशनल रिलीफ फंड में ट्रांसफर कर देना चाहिए।
दुनिया में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या तीन करोड़ के पार कर गई, 10 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। 780 करोड़ की आबादी वाली दुनिया में ये आंकड़ा कितना बड़ा है। कोरोना वायरस ने भारत में 58 लाख से अधिक लोगों को संक्रमण का शिकार बनाया और 92 हजार अधिक लोगों की जान ले ली है। कोरोना वायरस से लड़ने के लिए भारत में पीएम केयर्स फंड की स्थापना की गई। लेकिन इसके साथ ही देश के बहुत सारे लोग इसपर सवाल उठाने लगे। कांग्रेस पार्टी समते कई बुद्धिजीवियों ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि पीएम केयर्स फंड पारदर्शी नहीं है और इसका सारा पैसा पीएम नेशनल रिलीफ फंड में ट्रांसफर कर देना चाहिए। जबकि कांग्रेस के विरोधियों का तर्क है की पीएमएनआरएफ कांग्रेस ने बनाया था और कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष इस ट्रस्ट का सदस्य हुआ करता था। इसलिए कांग्रेस PMNRF को पीएम केयर्स फंड से बेहतर मानती है। आज के इस विश्लेषण में हम इन दोनों फंड से जुड़ी कुछ अहम जानकारी आपके साथ साझा करेंगे साथ ही बताएंगे कि आखिर पीएम केयर्स और पीएमएनआरएफ में क्या अंतर है…
सबसे पहले आपको दो तस्वीर दिखाते हैं और इतिहास के साथ-साथ आज के दौर की भी सच्चाई से रूबरू करवाते हैं। एक तस्वीर है साल 1947-48 की जब लोग देश के बंटवारे के बाद लाखों की संख्या में पाकिस्तान से भारत आ रहे थे। इन्हीं लोगों की मदद के लिए उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (PMNRF) का गठन किया था। 74 सालों के बाद देश ने एक बार फिर पलायन की कुछ ऐसी ही तस्वीर से दो-चार हुआ लेकिन इस बार कारण बंटवारा नहीं बल्कि एक वायरस की वजह से हो रहा था। लाकडाउन की वजह से लाखों की संख्या में मजदूर पलायन कर रहे थे। पलायन की इन्हीं तस्वीरों के बीच 28 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पीएम केयर्स फंड का गठन किया गया। इन दोनों फंड के बीच के बारीकियों को देखें तो एक फंड धर्म के नाम पर सताए गए लोगों को राहत देने के लिए बनाया गया था। जबकि दूसरा फंड वायरस से प्रभावित लोगों को बचाने के लिए बनाया गया।
पीएम केयर्स
पीएम केयर्स का गठन 2020 में तब किया गया जब देश कोरोना महासंकट से जूझ रहा है।
इसका गठन चैरिटेबल ट्रस्ट के रूप में किया गया है। प्रधानमंत्री इसके पदेन अध्यक्ष हैं।
रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री ट्रस्ट के सदस्य। विज्ञान, स्वास्थ्य, कानून, सार्वजनिक कार्य जैसे क्षेत्रों की प्रसिद्ध हस्तियों को ट्रस्ट के सदस्य के रूप में नामित किया जा सकता है।
पीएम केयर्स ट्रस्ट में जमा पैसा किस आपदा में कितना खर्च किया जाए, इसका फैसला मंत्रियों एवं नामित सदस्यों को सामूहिक तौर पर लेना होगा।
पीएम केयर्स में जो कोई भी जितना भी धन दान करेगा, वह पूरी की पूरी रकम टैक्स छूट के दायरे में आएगी। टैक्स छूट का यह नियम व्यक्ति, संस्था या कंपनी सब पर लागू होगा।
कंपनियों के लिए एक और अच्छी बात यह है कि वो पीएम केयर्स फंड में दान की गई रकम को कंपनीज ऐक्ट 2013 के तहत सीएसआर यानी कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी मद में हुआ खर्च बता सकती हैं।
पीएम केयर्स के खातों की ऑडिटिंग कौन करेगा, यह अब तक स्पष्ट नहीं है।
प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष
पाकिस्तान से विस्थापित लोगों की मदद करने के लिए जनवरी, 1948 में प्रधानमंत्री पंडित नेहरू की पहल पर इसकी स्थापना की गई थी। उसके बाद से हर आपदा की स्थिति में और सामान्य समय में भी आम लोगों को गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए इससे मदद की जाती है।
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जनवरी 1948 में संविधान लागू होने से पहले प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (PMNRF) का गठन किया था। तब जरूरत पाकिस्तान से विस्थापित लोगों की मदद करने की थी।
तब इसकी संचालन समिति के सदस्यों में एक कांग्रेस अध्यक्ष भी शामिल होते थे।
1985 में राजीव गांधी की सरकार ने इस फंड का पूर्ण नियंत्रण प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के हाथ में दे दिया।
1985 से इस कोष का कितना पैसा, किस आपदा पर खर्च होगा, यह सिर्फ प्रधानमंत्री की सिफारिश पर तय होने लगा।
प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में दान की गई पूरी रकम टैक्स छूट के दायरे में आती है।
कंपनियां इस फंड में भी दान देकर रकम को सीएसआर खर्च के तौर पर दिखा सकती है।
PMNRF फंड के खातों की ऑडिटिंग भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की ओर से नहीं होती है, कोई थर्ड पार्टी ही ऑडिट करती रही है।
PMNRF में पड़े हैं ₹38 अरब
दरअसल, पीएम केयर्स के आलोचकों का कहना है कि अभी पीएम राष्ट्रीय राहत कोष में 3,800.44 करोड़ रुपये पड़े हैं तो कोरोना संकट में इसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए। हालांकि, खबर यह भी है कि इस फंड की सिर्फ 15% रकम ही नकदी के रूप में है, शेष धन एफडी के रूप में जमा है या फिर राज्य सरकारों को लोन के रूप में दिया गया है।
कुल मिलाकर अगर बात करें तो 74 साल पहले बनाए गए प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष और 2020 में गठित पीएम केयर्स फंड का मकसद लगभग एक जैसा ही है। लेकिन जिस कांग्रेस पार्टी ने कभी प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोर्स पर सवाल नहीं उठाया वहीं कांग्रेस ने पीएम केयर्स फंड पर सवाल उठाने शुरू किए। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तो प्रधानमंत्री मोदी को चिट्ठी लिखकर यहां तक कह दिया कि पीएम केयर्स फंड में आने वाली रकम को पीएम रिलीफ फंड में ट्रांसफर कर दिया जाए ताकि इसकी पारदर्शिता बनी रहे। लेकिन 1948 में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने प्रधानमंत्री राहत कोस की स्थापना की थी उस वक्त शायद कांग्रेस की डिक्सनरी में पारदर्शिता जैसे शब्द नहीं मौजूद होंगे। ऐसा कहने के पीछे की एक दिलचस्प वजह भी आपको बताते हैं।
24 जनवरी 1948 को पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) को जारी किए गए प्रेस रिलीज के पंडित नेहरू ने एक केंद्रीय फंड की जरूरत बताते हुए लिखा था कि- बहुत सारे लोगों ने अलग-अलग फंड में दान दिया है. मुझे लगता है कि इसके लिए एक केंद्रीय फंड बनाना अच्छा रहेगा. इस फंड का इस्तेमाल किसी भी तरह की विपदा से निपटने के लिए किया जा सकता है लेकिन फिलहाल इसका इस्तेमाल पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थियों को बसाने के लिए किया जाना चाहिए। आज की तरह उस वक्त भी टाटा परिवार ने देश की मदद में उदारता दिखाई थी इसलिए बतौर सदस्य टाटा घराने के सदस्य को भी इस कमेटी में रखा गया था। असल में नेहरू जी को कल्पना ही नहीं होगी कि कांग्रेस के ऐसे दिन भी आयेंगे जब लगातार दूसरी बार वह लोकसभा में विपक्ष के नेता लायक सीट भी नहीं जीत पायेगी। इसीलिए पीएम फंड कमेटी में कांग्रेस पार्टी के मुखिया को रखा गया। क्या आज के संदर्भ में अकेले कांग्रेस अध्यक्ष का इस कमेटी में रहना उपयुक्त है ? लेकिन इस कमेटी की संरचना राजनीतिक ही है क्योंकि सोनिया, बरुआ और राहुल को छोड़कर लगभग जितने भी कांग्रेसी प्रधानमंत्री रहे हैं वे कांग्रेस अध्यक्ष भी इस अवधि में बने रहे हैं। इसलिए इस विवाद के शोर ने जनता में इस फंड को लेकर मोदी से ज्यादा कांग्रेस पार्टी को सवालों के घेरे में ला दिया। कांग्रेस या उसके द्वारा 70 साल से वित्त पोषित होते आ रहे अन्य दल का विरोध तर्कसंगत होता अगर पीएम अपनी पार्टी के अध्यक्ष को नेहरू जी की तरह इस ट्रस्ट में सदस्य नामित करते।