महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ, क्या उसे सभ्य समाज की राजनीति कहा जा सकता है ?
दरअसल यहाँ बात एक अभिनेत्री की नहीं बल्कि बात इस देश के किसी भी नागरिक के संवैधानिक अधिकारों की है। बात किसी तथाकथित अवैध निर्माण को गिरा देने की नहीं है बल्कि बात तो सरकार की अपने देशवासियों के प्रति दायित्वों की है। हमारे यहाँ कहा जाता है, प्रजासुखे सुखं राज्ञः प्रजानां तु हिते हितं।” अर्थात् प्रजा के सुख में राजा का सुख है प्रजा के हित में राजा का हित है। भारत एक ऐसा देश है जो सदियों ग़ुलामी की जंजीरों में जकड़ा रहा और जिसकी पीढ़ियों ने इस आज़ादी के लिए संघर्ष किया। आज जब उस आज़ाद देश में एक ऐसा अपराधी जो मोस्ट वांटेड है उसकी प्रॉपर्टी सीना ताने खड़ी रहती है लेकिन एक टैक्सपेयर की बिल्डिंग तोड़ दी जाती है। जब कोर्ट द्वारा उस अपराधी की 80 साल पुरानी जर्जर एवं अवैध बिल्डिंग को नेस्तनाबूद करने के एक साल पुराने आदेश के बावजूद मानसून का हवाला देकर उसे हाथ तक नहीं लगाया जाता। जब 30 सितंबर तक कोरोना के चलते किसी भी तोड़ फोड़ पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगाई जाने के बावजूद एक महिला की बिल्डिंग पर बुलडोजर चला दिया जाता है। जब सरकार विरोधी रिपोर्टिंग करने के कारण कुछ पत्रकारों को जेल में डाल दिया जाता है। जब सोशल मीडिया पर सरकार विरोधी कुछ सामग्री पोस्ट करने के कारण किसी दल विशेष के कार्यकर्ता एक पूर्व नौसेना अधिकारी पर हिंसक आक्रमण करते हैं। तो एक आम आदमी की नज़र में अभिव्यक्ति की आज़ादी, लोकतांत्रिक मूल्यों, संविधान के प्रति आस्था, न्यायालय के आदेशों का सम्मान जैसे शब्दों की नींव ही हिल जाती है। आज जब उस देश में एक महिला के लिए सत्तारूढ़ दल के एक नेता द्वारा आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया जाता है तो जिन महिला अधिकारों, महिला सशक्तिकरण, महिला अस्मिता जैसे शब्दों का प्रयोग तथाकथित लिबरल्स द्वारा किया जाता है, उन शब्दों का खोखलापन उभर कर सामने आ जाता है।
राजनैतिक दृष्टि से भी महाराष्ट्र सरकार द्वारा उठाए जा रहे यह कदम अपरिपक्वता ही दर्शाते हैं। क्योंकि कंगना को भी पूरी तरह सही नहीं कहा जा सकता। जिस प्रकार की भाषा और जिन तेवरों का प्रयोग वो महाराष्ट्र और वहाँ की सरकार के लिए लगातार कर रही थीं वो निश्चित ही अपमानजनक थे। हो सकता है वो जानबूझकर किसी मकसद से ऐसा कर रही हों। लेकिन सत्ता में रहते हुए गुंडागर्दी करना किसी भी परिस्थिति में जायज नहीं ठहराए जा सकते। महाराष्ट्र सरकार की गलती यही रही कि वो कंगना की चाल में फंस गई और कंगना ने पब्लिक की सहानुभूति हासिल कर ली। जबकि महाराष्ट्र सरकार अगर राजनैतिक दूरदृष्टि और समझ रखती तो कंगना की इस राजनीति का जवाब राजनीति से देती अपशब्दों और हिंसा से नहीं। इस प्रकार की हरकतों से शिवसेना ने अपना कितना नुकसान किया है उसे शायद अंदाज़ा भी नहीं है। कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाना, सुशांत केस में महाराष्ट्र पुलिस की कार्यशैली और अब कंगना के बयानों पर हिंसक प्रतिक्रिया।
कहते हैं लोकतंत्र में जनभावनाओं को समझना ही जीत की कुंजी होती है लेकिन शिवसेना लगातार अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है। 1966 में बनी एक पार्टी जिसकी पहचान आज तक केवल एक क्षेत्रीय दल के रूप में है। वो पार्टी जो अपने ही गढ़ महाराष्ट्र में भी एक अल्पमत की सरकार चला रही है। ऐसी पार्टी जो आज तक महाराष्ट्र से बाहर अपनी जमीन नहीं खड़ी कर पाई। एक ऐसी पार्टी जिसकी लोकसभा में उपस्थित मात्र 3.3% है, अपनी इन हरकतों से कहीं महाराष्ट्र में भी अपनी बची-खुची जमीन ना गंवा बैठे।
-डॉ. नीलम महेंद्र