समाज हम सदस्यों का प्रतिबिंब होता है व सुधार करना हर सदस्य का दायित्व है
यहीं सब बातें, गलतियां, सुधार हम बचपन से पिछले ५०-६० वर्षों से देखते, सुनते आ रहे है और परिस्थितियां और बिगडती जा रही हैं। क्यों??
मै अपने ५०-६० सालों के अनुभवों पर आकलन करने की कोशिश करता हूँ, अगर मेरी कोई बात, टिप्पणी किसी को बुरी लगे तो कृपया नजरअंदाज कर मुझे क्षमा करें।
सभी एक समान नहीं होते, हर परिवार, समाज, व्यक्तियों मे १०% अपवाद भी होते है। महाभारत में आचार्य द्रौणाचार्य, कृपाचार्य, भीष्मपितामह आदि मौन हो कर सब देखते रहे लेकिन विदुर ने हमेशा मुँह पर समय समय पर सत्य कहा व जरूरत पडने पर सभा का त्याग कर दिया था।हर व्यक्ति को सुधार अपने खुद के घर से करना पड़ता हैं।
जब हमारे ऊपर जबाबदारी आती हैं या हमारे खुद के घर पर कोई आयोजन, प्रौग्राम आदि होता है तब हम “बेचारे” बनकर समाज का या दुसरो का मुँह देखते हुए “लोग क्या कहेंगे” की चादर ओढ लेते हैं। “लोग क्या कहेंगे” या लोगों को खुश करने के लिये समाज की मर्यादा के नाम पर प्रतिस्पर्धा मे उतर जाते है. हमने रामदरबार का चित्र देखा है और यह चित्र हमें एक संदेश देता हैं। हनुमानजी श्रीरामजी के चरणों पर बैठे रहते हैं। सिर्फ हनुमान चालीसा पढने या पुजा करने से कुछ प्राप्त नहीं हो सकता, हमे भगवान के गुण अपनाना जरूरी होता है।
हनुमानजी का मुँह श्रीरामजी के तरफ रहता है और पीठ दुनिया की तरफ रहता है। अर्थात हमने सिर्फ भगवान कि तरफ देखते हुये सही काम करते रहना चाहिए। जब तक हम अपने बुद्धि विवेक का उपयोग किये बिना सिर्फ दुनिया का सोचते हुये निर्णय करेंगे तब तक हम गलतियां करते रहेंगे Charity begain from home,आप मरें बिना स्वर्ग नहीं मिलता।बदलाव प्रकृति का शाश्वत सत्य है।
अभी हम रामायण व महाभारत दोनों साथ साथ देख रहे हैं।दोनों में विष्णु भगवान के अवतार के रुप मे रामजी व कृष्ण जी है।दोनों के व्यवहार, चरित्र, कार्यशैली मे जमीन आसमान का अंतर दिखता है।यह इसलिए है कि भगवान भी हमको इस लोककथाओं, लीलाओ से संदेश दे रहे है कि मनुष्य को समय, काल, परिस्थितियों अनुसार अपने कार्यों, व्यवहार मे बदलाव करना चाहिए।व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज व समाज से देश बनता है।
इंसान की कमजोरी, गलतियां ही परिवार, समाज व देश का हिस्सा होता है।*इंसान की कुछ कमजोरियां होती है और वहीं हमारी कमजोरियां परिवार, समाज व देश की कमजोरियां बनती हैं।इसलिये परिवार, समाज को सुधारने के लिए हर व्यक्ति का सुधरना जरूरी है।
१) इंसान हमेशा अपने फायदे/नुकसान/सहुलियत के अनुसार हर कार्य/चीजों को अपनाता है और अपने कार्यों को अपने तर्क/कुतर्को से सही साबित करने की कोशिशें करता है।हम हमेशा आसान विकल्प चुनते हैं जो हमें सुट करता है।
२) हम करना अपने मन की चाहते हैं और तिलक निकालने के लिये space goat/soft target/ सहारा ढुंढते है।अपने किये हुये हर सही-गलत कार्यों को अपने तर्क/कुतर्क/ से करते है
३) इतिहास गवाह हैं कि हम ९०% सबको सच्चाई से कोई मतलब नहीं। इंसान अपने अपने स्वार्थों/ जरुरतों/ फायदे-नुकसान से जुडा/ बंधा होता है व आसपास हो रही गलतियों को अपने फायदे/नुकसान/ स्वार्थ के तराजू पर तौल कर मौन की चादर ओढ लेते है।
४) आज हमारे समाज/देश मे ६०-७०% मध्यम वर्गीय परिवार रहते हैं। कुछ खानदानी अमीर होते है और कुछ नये नये अमीर बनते है। जो नये नये अमीर बनते है वो अपनी पहचान बनाने व धाक जमाने के लिए प्लेटफार्म ढुंढते है जिसके माध्यम से परिवार/समाज में उनकी एक पहचान बने। यही लोग धार्मिक अनुष्ठान, आयोजनों, शादी व्याह, सामाजिक आयोजन के माध्यमों से पैसा पानी की तरह बहाते है, और चैरिटी, डोनेशनों के जोर पर धीरे धीरे समाज व राजनीति में कुर्सियों पर बैठते हैं और हर तरह के नयी नयी कुरितियों को जन्म देते हैं।समाज के मध्यम वर्गीय लोग/परिवार इन्हीं लोगों के पद चिन्हों पर चलने की गलतियाँ करते जाते है।
५) चरित्र निर्माण के लिये ढृड इच्छाशक्ति, strong WILL-POWER is required for any positive change.जीवन मे कुछ नियम बनाना बहुत जरूरी होता है। हमें हमारे आसपास तीन सर्कल्स बनाया जा सकता है।मसलन मै शराब, मांसाहार नहीं करुंगा यह सर्कल को किसी भी परिस्थितियों में नहीं तोडा जा सकता।
६) आज के बच्चे हमारे आने वाले भविष्य हैं। अपने बच्चों को सिर्फ उपदेश देने की जगह हमको उनके rol model, आदर्श, प्रैरणा बनने की जरूरत है। बच्चे हमको सुनकर नहीं बल्कि देखकर सीखते हैं। हमको उनके आदर्श माता पिता बनना पडेगा।
हमने चिठ्ठी पत्री छोडकर वौटसेप , ईमेल अपना लिया लेकिन मृत्यु के समय, सगाई, शादी व्याह आदि आयोजन मे वहीं पुराने रितीरिवाजों के बंधनों मे जकडे है। रित रिवाज हमारे लिए बनाए गए थे, हम रितीरिवाजों के लिये नहीं। *जब कुछ रितीरिवाज सदस्यों को जकडने लगे, सदस्यों के लिये बोझ-बंधन बनने लगे तब उनमें बदलाव करना समझदारी होती हैं समाज की गलतियों को समझते हुए हर सदस्य को अपने आप मे सुधार करके अपने खुद के व्यवहार में बदलाव करके समाज व अपने दुसरे सभी सदस्यों के सामने आदर्श प्रस्तुत करना बेहद जरूरी है।
समयानुसार हर चीज मे बदलाव बहुत जरूरी होता है व जो व्यक्ति, परिवार, समाज, देश समयानुसार व परिस्थितियों अनुसार बदलाव को स्वीकार करता है वहीं यशस्वी होता है।
शरद गोपीदासजी बागडी
Portfolio consultant, Writer & Social worker. नागपुर (महाराष्ट्र)
www.sharadbagdi.com