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बाजारों में सही मायने में कौन खर्च करता है. आगे इसकी स्थिति क्या हो सकती है:

हमारी अर्थव्यवस्था, जीडीपी का आधार हमारा बाजार होता है। नागरिकों की क्रय शक्ति हमारे अर्थव्यवस्था की रीढ की हड्डी होती हैं। हमारे नागरिकों, कंज्यूमर बाजारों में बिकने वाले मालों को हम अलग अलग प्रकार से वर्गीकरण कर सकते हैं।
१) एक है अति आवश्यक, जो हर व्यक्ति को लेना ही है। इसके बगैर हमारा गुजारा नहीं हो सकता। इन वस्तुओं की जितनी जरूरत है, हम उतनी ही लेते हैं इसलिए इनके ऊपर बहुत ज्यादा खर्च नहीं होता।
२)दूसरा है आरामदायक वस्तुएं। व्यक्ति अपने आराम के लिए ये वस्तुएं खरीदता है। इन वस्तुओं पर अति आवश्यक वस्तुओं से थोड़ा अतिरिक्त खर्च होता है।
सबसे ज्यादा खर्च जो होता है, वह होता है
३)अपने वैभव, आधुनिक जीवन शैली वाली वस्तुओं पर। यह वस्तुएं साधारणतः ब्रांडेड, लक्जरी आइटम होती है। बड़े होटलों में, क्लबों में, बड़े पर्यटन स्थलों पर ऐसी सब जगह व इन वस्तुओं पर खर्चा होता है।
इस प्रकार के लक्जरी खर्च, जो जीवन की आवश्यकता बिल्कुल नहीं होती है और यह हम दिखावे के लिए, अपने मन, अंहकार की संतुष्टि समाज में अपना रुतबा कायम रखने और अपने आप को कंफर्टेबल रखने के लिए करते हैं।


। अर्थव्यवस्था में सबसे ज्यादा खर्च लग्जरी पर ही होता है और इसी से अर्थव्यवस्था का पहिया तेजी से घुमता है।


हम अगर खर्च करने वाले जो उपभोक्ता है, उनका श्रेणीकरण करें, तो हम पाएंगे।
१) एक रोजनदार हैं जो रोज कमाता है, रोज खाता है। इसका अधिकांश खर्चा अति आवश्यक वस्तुओं पर ही होता है। उसके आगे उसकी खर्च करने की क्षमता नहीं है।
२) दूसरे खर्च करने वाला वर्ग मध्यम श्रेणी के लोग हैं। यह वर्ग अधिकांश खर्च जीवन आवश्यक वस्तुओं पर ही करते हैं। कुछ पैसा आरामदेह वस्तुओं पर भी खर्च करते हैं। बचा पैसा वे अपने भविष्य की आपूर्ति के लिए निवेश करके रखते हैं।
३) एक अलग प्रकार का अत्यधिक खर्च करने वाला वर्ग है। यह वह वर्ग है जिसके पास आसानी से बेहिसाब कमाई होती है। इनके पास पैसे की तरलता बहुत ज्यादा रहती है। साधारण तौर पर जो ऐसी नौकरी करते हैं, जहां पर कुछ ना कुछ अन्य कमाई होती है। यह अन्य कमाई अधिकांश नगद में ही रहती। ऐसा व्यवसाय कर रहे हैं जहां उनका एकाधिकार है व कई अन्य व्यवसाय जहां आमदनी बहुत ज्यादा हो। ऐसे परिवार के बच्चै व सभी सदस्य मुक्त खुले हाथों से खर्चा करते हैं।
एक सच्चाई और देखें।

पैसा जो है उसका रख-रखाव तीन प्रकार से किया जा सकता है।

१)एक है जो आपके बैंक में चला जाता है।
२)दूसरा है जो उपभोक्ताओं के पास नगद में घर में आता है और
३)तीसरा है बैंकों द्वारा वितरण किए गए क्रेडिट कार्ड के माध्यम से उपलब्ध राशि।
हम देखते हैं की एक बार पैसा जो बैंक में गया वहां से जरूरी हुआ तो ही निकाला जाता है। उपभोक्ता का बैंक में जमा किया हुआ पैसा बाजार में बहुत कम आता है। सबसे ज्यादा पैसा जो बाजार में आता है वह है जो नगद की कमाई होती है। ऊपर से कमाई होती है। जिन प्रतिष्ठानों में अत्याधिक कमाई है, उनके यहां के बच्चों के भी पैसे बड़ी तादाद में बाजारों में आते हैं। इसका हिसाब बराबर नहीं रहता है। हमारे देश में इस प्रकार के पैसे की मात्रा अत्यधिक है। ऐसी परिस्थिति में बाजार चलाने वाला यही पैसा होता है।

क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल होते जरूर है मगर अभी इसका बहुत ज्यादा चलन नही है। क्रेडिट कार्ड या तो नौकरी पेशे वाले इस्तेमाल कर रहे हैं। या फिर कंपनियों के लोग इस्तेमाल कर रहे हैं। जरूरी होने पर अन्य लोग इस्तेमाल करते हैं। इसलिए क्रेडिट कार्ड के माध्यम से बहुत ज्यादा मात्रा में पैसा बाजार में आता है ऐसा कहा नहीं जा सकता।


हम यह देखें कि करोना वायरस के बाद तीन प्रकार के पैसों की और अलग-अलग वर्ग के उपभोक्ताओं की हालत क्या है। उनका व्यवहार कैसा हो सकता है।
जो वर्ग रोज कमाता था और रोज खाता था उसकी स्थिति बहुत ही दयनीय है। उसे दो वक्त का खाना या तो सरकारी मदद से या जो लोग धर्मदा के हिसाब से भोजन वितरण का काम कर रहे हैं इनके भरोसे हो रहा है। ऐसे अधिकांश लोग है।

मध्यमवर्ग श्रेणी के लोग हैं, जिनके पास आय के स्थिर स्रोत हैं। ऐसे लोग भी अत्यधिक आवश्यकता के माल पर ही खर्च कर रहे हैं। बाकी आरामदायक आदि में कहीं भी उनका खर्च नहीं हो रहा है।
कुछ सेवानिवृत्त, रिटायर्ड लोग मकान के किराये, पुंजी पर मिलने वाले ब्याज पर गुजारा करते थे उनकी हालत भी इस समय दयनीय बनी हुई है क्योंकि किराया रुक गया, बाकी रोजमर्रा के खर्च अपनी जगह बने हुए हैं।

इसी प्रकार जो वर्ग वैभव भरी जीवनशैली जीता है। जिसके पास पैसे की किसी प्रकार की कोई कमी नहीं है। वह व्यक्ति भी आवश्यक वस्तुएं छोड़कर बाकी जगह खर्च नहीं कर रहा है या यू कहे अभी खर्च करने के लिए उसके पास खर्चा करने की जगह नहीं है।

इसका मतलब क्या हो गया। अब समझने का प्रयास करें, की मार्च-अप्रेल-मई-जून, यह 4 महीने में होने वाले खर्च, शादी ब्याह में होने वाले खर्च, छुट्टियों में होने वाले खर्च, पर्यटन में या जरूरी काम से यहां वहां जाने वाले खर्च। यह सब बच गए। थोड़ा आगे समझने का प्रयास करें तो मध्यमवर्ग और अत्याधिक पैसे वाला वर्ग कितनी बड़ी पूंजी संग्रह करके उस के ऊपर बैठा है।
उसके चार महीने के सारे खर्चे उसके पास है। कितनी बड़ी पूंजी जमा हो गई। यह पूंजी कब निकलेगी। कैसे निकलेगी। इसका भी अभ्यास करना जरूरी है।


इसी विषय के साथ जुड़ा है उन लोगों की आमदनी, जो ऐसी जगह नौकरी कर रहे थे जहां तनखाह से ज्यादा ऊपरी आमदनी हो रही थी। या ऐसे व्यवसाय में थे जहां पैसे वाले बच्चे आकर बेतहाशा खर्च करते थे। ऐसी भी जगह है जहां मजबूरी में लोगों को खर्च करना पड़ता था। जैसे अस्पताल हो गए। इन सब लोगों के आमदनी में बहुत बड़ा असर हुआ है। इसकी भरपाई कैसे होगी यह भी चिंता का विषय है। इनमें से कई लोगों ने बैंकों से कर्ज भी लेकर रखा होगा। उसका भुगतान कैसे होगा? यह भी एक विषय है।


आगे परिस्थिति किस प्रकार से करवट लेगी, यह समझ के बाहर है।
इतनी बड़ी तादाद में रोज कमाकर रोज खाने वाले जो लोग हैं, मजदूरी-नौकरी करने वाले लोग हैं, रेडी पटरी पर खाने का सामान बेचने वाले लोग हैं, इन लोगों की आमदनी पर जब असर पड़ेगा तो क्या परिस्थिति होगी। यह जो बड़े-बड़े कारखाने, अस्पताल, होटल आदि बंद हो जाएंगे तो बेरोजगारी का क्या हाल होगा। इसकी भी चिंता करना जरूरी है।

आने वाले समय में अर्थव्यवस्था दो तरीके हिस्सों में बांट कर चलेगी।

वह लोग जिन्होंने इन चार माह में अपना सब कुछ लुटा दिया। इनके पास कुछ नहीं बचा। आगे इन लोगों को रोजगार मिलेगा या नहीं मिलेगा। इनकी आमदनी होगी या नहीं होगी। यह बहुत बड़ी समस्या हो जाएगी। ऐसी परिस्थिति में क्या अपराधिक प्रवृत्ति पैदा हो जाएगी। लूटपाट, छीना-झपटी, इस प्रकार की वारदातें हमें ज्यादा देखने मिलेंगी। कानून व्यवस्था पर सरकार को ज्यादा ध्यान देना पड़ेगा। यह एक भय की स्थिति उत्पन्न होने की संभावना है।


इसके बिल्कुल विपरीत, जिन लोगों के पास यह चार महीने में धन संग्रह हो गया है, जिनकी आमदनी भले ही लाँकडाऊन के दौरान स्थगित हो गई थी। वह फिर से शुरू हो जाएगी। इन लोगों का व्यापार बहुत अच्छा चलने लगेगा। इन लोगों के कारण अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। व्यापार और बाजारों में रौनक अच्छी होने लगेगी। इन लोगों की दिवाली बहुत अच्छी होने की संभावना है।
कहने का तात्पर्य है कि पूरा समाज दो विपरीत दिशाओं में चला जाएगा। एक जिनके पास कुछ नहीं है, दूसरा वर्ग जिसके पास बहुत ज्यादा पैसा जमा हो गया ऐसी परिस्थिति में सरकार और समाज अपने लोगों के बीच में समन्वय कैसे स्थापित करेगी। वंचित लोगों को कैसे वापस अर्थव्यवस्था में लाया जाएगा। रोजगार कैसे दिया जाएगा। इस पर गंभीरता से विचार होना चाहिए। मेरा ऐसा मानना है।

शरद गोपीदासजी बागडी
समाज सेवी, लेखक एवं स्तम्भकार
३ अंतरराष्ट्रीय- १८ राष्ट्रीय पुरस्कार व २१८ संस्थाओं द्वारा संम्मानित पोर्टफोलियो कंसलटेंट

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